वैज्ञानिक प्रबंध की परिभाषा दीजिए किन्हीं तीन सिद्धांतो के बारे में बताइए
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वैज्ञानिक प्रबन्धन (जिसे टेलरवाद और टेलर पद्धति भी कहते हैं) प्रबन्धन का एक सिद्धान्त है जो कार्य-प्रवाह (workflow) का विश्लेषण एवं संश्लेषण करती है और इस प्रकार श्रमिक उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता करती है। इसके मूल सिद्धान्त १८८० एवं १८९० के दशकों में फ्रेडरिक विंस्लो टेलर द्वारा प्रतिपादित किये गये जो उनकी रचनाओं "शॉप मैनेजमेन्ट" (१९०५) तथा "द प्रिन्सिपल्स ऑफ साइन्टिफिक मैनेजमेन्ट" (१९११) के द्वारा प्रकाश में आये। टेलर का मानना था कि परिपाटी और "रूल ऑफ थम्ब" पर आधारित निर्णय के स्थान पर ऐसी तरीकों/विधियों का उपयोग किया जाना चाहिये जो कर्मिकों के कार्य का ध्यानपूर्बक अध्ययन के फलस्वरूप विकसित किये गये हों।
टेलर के शब्दों में
वैज्ञानिक प्रबंध यह जानने की कला है कि आप श्रमिकों से क्या काम कराना चाहते हैं और फिर यह देखना कि वे उसको सर्वोत्तम ढंग से एवं कम से कम लागत पर करें।
बैथलहम स्टील कंपनी, जिसमें टेलर स्वयं कार्यरत थे, में वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों को लागू करने से उत्पादकता में तीन गुणा वृद्धि हुई। इसलिए इन सिद्धांतों पर विचार करना उचित ही होगा।
विज्ञान पद्धति, न कि अंगूठा टेक नियमसंपादित करें
टेलर ने प्रबंध के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने की पहल की। हम पहले ही प्रबंध अंगूठा टेक नियम की सीमाओं की चर्चा कर चुके हैं। अब क्योंकि सभी प्रबंधक अपने-अपने अंगूठा टेक नियमों को अपनाएँगे इसलिए स्वभाविक है कि सभी समान रूप से प्रभावी नहीं होंगे। टेलर का विश्वास था कि अधिकतम कार्यक्षमता में वृद्धि केवल एक ही सर्वोत्तम विधि थी। इस पद्धति को अध्ययन एवं विश्लेषण के द्वारा विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार से विकसित पद्धति को पूरे संगठन में ‘अंगूठा टेक नियम’ के स्थान पर लागू करना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति में प्रारंभिक प्रणालियों का कार्य अध्ययन, सर्वश्रेष्ठ तरीकों का एकीकरण एवं स्तरीय पद्धति के विकास के माध्यम से जाँच पड़ताल सम्मिलित थी, जिसे कि पूरे संगठन में अपनाया जाना चाहिए। टेलर के अनुसार लोहे की छड़ों को डब्बाबंद गाड़ियों में लादने की छोटी सी उत्पादन क्रिया को भी वैज्ञानिक ढंग से नियोजित किया जा सकता है एवं उसका प्रबंधन किया जा सकता है। इससे मानवीय शक्ति एवं समय तथा माल की बर्बादी में भारी बचत होगी। जितनी अधिक व्यवस्थित प्रक्रिया होगी उतनी ही अधिक बचत होगी।
वर्तमान संदर्भ में इंटरनेट का प्रयोग आंतरिक कार्यकुशलता एवं ग्राहक की संतुष्टि में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया है।
समन्वयसंपादित करें
उत्पादन की कारखाना प्रणाली में प्रबंधक, मालिक एवं श्रमिकों के बीच की कड़ी होते हैं। प्रबंधकों को श्रमिकों से कार्य पूरा कराने का अधिकार मिला होता है इसलिए आप सरलता से समझ सकते हैं कि एक प्रकार वे वर्ग भेद अर्थात् प्रबंधक बनाम श्रमिक, की सदा संभावना बनी रहती है। टेलर ने पाया कि इस टकराव से, श्रमिक, प्रबंधक अथवा कारखाना मालिक किसी को लाभ नहीं पहुँचाता है। उसने प्रबंध एवं श्रमिकों के बीच पूरी तरह से सहयोग पर जोर दिया। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों का ही महत्त्व है। इस स्थिति को पाने के लिए टेलर ने प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों में संपूर्ण मानसिक क्रांति का आहवान किया। इसका अर्थ था कि प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव आना चाहिए। ऐसा होने पर श्रमिक संगठन भी हड़ताल करने आदि की नहीं सोचेंगे। यदि कंपनी को लाभ होता है तो प्रबंधकों को चाहिए कि वह इसे कर्मचारियों में बाँटे। कर्मचारियों को भी चाहिए कि कंपनी की भलाई के लिए वह परिश्रम करें एवं परिवर्तन को अपनाएँ। टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि दोनों का हित समान है, कर्मचारियों की समृद्धि के बिना प्रबंधकों की समृद्धि और इसके विपरीत प्रबंधकों की समृद्धि के बिना कर्म श्रमिकों की समृद्धि भी अधिक समय तक नहीं रह सकती। जापानियों की कार्य संस्कृति इस स्थिति का उत्कृष्ट उदाहरण है। जापानी कंपनियों में पितृवत्त शैली का प्रबंध होता है। प्रबंधक एवं श्रमिकों के बीच कुछ भी छुपा नहीं होता। श्रमिक यदि हड़ताल करते हैं तो वह काले बिल्ले लगा लेते हैं लेकिन प्रबंध की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए सामान्य घंटों से भी अधिक कार्य करते हैं।
सहयोगसंपादित करें
व्यक्तिवाद के स्थान पर श्रम एवं प्रबंध में पूर्णरूप सहयोग होना चाहिए। यह सहयोग, न कि टकराव के सिद्धांत का विस्तार है। प्रतियोगिता के स्थान पर सहयोग होना चाहिए। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक है कि यदि कर्मचारियों की ओर से कोई रचनात्मक सुझाव आता है तो उस पर ध्यान देना चाहिए। यदि उनके सुझाव से लागत में पर्याप्त कमी आती है तो उन्हें इसका पुरस्कार मिलना चाहिए। उनकी प्रबंध में भागीदारी होनी चाहिए और जब भी कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया जाए तो श्रमिकों को विश्वास में लेना चाहिए। इसके साथ-साथ श्रमिकों को भी चाहिए कि वह हड़ताल न करें तथा प्रबंध से अनुचित माँग न करें। वास्तव में यदि खुली संप्रेषण व्यवस्था एवं आपस में विश्वास होगा तो श्रम संगठन की आवश्यकता ही नहीं होगी। जापानी कंपनियों के समान पितृवत शैली का प्रबंध होगा जिसमें नियोक्ता कर्मचारियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगा। टेलर के अनुसार श्रमिक एवं प्रबंध के बीच कार्य एवं उत्तरदायित्व का लगभग समान विभाजन होगा। पूरे समय प्रबंध कर्मचारियों के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेगा। उनकी सहायता करेगा, प्रोत्साहित करेगा एवं उनका मार्ग प्रशस्त करेगा।