Hindi, asked by shanaya68825, 1 year ago

विज्ञान प्रदर्शनी में एक घंटा​

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Answered by uniyalsudhir368
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Answer:

आज पिताजी को आदर्श विद्या मंदिर में विज्ञान प्रदर्शनी के अवलोकन हेतु अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था । मेरी विज्ञान में रुचि होने के कारण पिताजी ने मुझे भी साथ आने को कहा था। उनके इस आदेश से मेरी मन की साध तो पूरी हो गई किन्तु मुझे जाना चाहिए या नहीं इसका निर्णय नही कर पा रहा था, अंतत: जाने का ही तय किया । विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण सुबह से ही मेरे मन में कौतूहल बना हुआ था । दूसरे दिन सुबह 9:00 बजते ही पिताजी ने मुझे आवाज लगाई और मुझसे पूछा कि" तुम तैयार हो ? " आ जाओ , मैं तुरंत ही पिताजी के साथ चल पड़ा । जैसे ही हम विद्यालय के प्रांगण में पहुंचे मुख्य अध्यापक ने अपने सहयोगियों के साथ पिताजी का स्वागत किया और मेरे विषय में भी बातचीत की। हम विद्यालय के भीतर प्रविष्ट हो चुके थे । मैंने वहां पर रखे गए तरह-तरह के विज्ञान से संबंधित अनेक प्रकार के मॉडल देखे जो बहुत ही कुशलता के साथ बनाए गए थे । देखा कि वहां पर एक छात्र द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग की प्रतिकृति बनाई गई थी । साहिल नामक विद्यार्थी ने पानी की टंकी बांस द्वारा बनाई तथा अलार्म बनाकर "जल बचाओ" पर संदेश दिया था । इला नाम की एक विद्यार्थी ने भी आइसक्रीम की लकड़ियों से वेक्यूम क्लीनर बनाया था । इसके अलावा अनेक छात्रों ने स्वच्छ पर्यावरण की पेंटिंग तथा हरित फलदार वृक्ष के लाभ दर्शाए थे। किन्हीं विद्यार्थियों ने मास्क की प्रतिकृति एवं अन्य मॉडल द्वारा प्रदूषण के दुष्परिणाम, रोबोट वाटर कूलर ,पानी गर्म करने के लिए लेटेस्ट रोड आदि के मॉडल बनाए थे । कई विद्यार्थियों ने रसायनों के द्वारा विभिन्न प्रकार की श्रृंगार की वस्तुओं का तथा कई प्रकार के लेप एवं उबटनों का प्रयोग दिखाया तथा उसका भली-भांति प्रदर्शन भी किया था इसके अतिरिक्त कई विद्यार्थियों ने अस्वच्छता एवं पॉलीथिन के द्वारा फैले प्रदूषण का तथा नुकसान का यथायोग्य साधनों द्वारा प्रदर्शन किया था । जिसमें अच्छे-अच्छे संदेश भी दिए गए थे । इसके अतिरिक्त खेती से संबंधित कई प्रकार के यंत्र के मॉडल तथा उनके विभिन्न प्रयोगों को भी दर्शाया गया था जिससे देखने वाले के मन में रोचकता उत्पन्न होती थी । यह सब देखकर मेरा मन इतना हर्षित हुआ कि मुझे समय का भान ही नहीं रहा और मैं सतत पिताजी के साथ आगे बढ़ता रहा । जब प्रदर्शनी समाप्त होने आयी तब मेरा ध्यान समय की ओर गया। पूरा एक घंटा व्यतीत हो चुका था । इस प्रोग्राम में पिताजी मुख्य अतिथि थे इसीलिए मुख्य अध्यापक ने उन्हें आभार व्यक्त किया और पिताजी ने भी जगह-जगह पर यथा योग्य रूपेण अनेक विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया था । स्कूल डायरेक्टर तथा प्राचार्य महोदय ने पिताजी का विशेष रूप से धन्यवाद किया एवं अपने स्कूल का प्रतीक चिन्ह (मोमेंटम) देकर पिताजी को सम्मानित किया । पिताजी ने भी उनका धन्यवाद किया तथा मुझसे कहने लगे "देखो बेटा कितने विद्यार्थी कुशलता पूर्वक अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं । इन सब को देखने के बाद तुम्हें अवश्य कुछ प्रेरणा मिली होगी ? "मैंने कहा हां पिताजी मुझे तो इस प्रदर्शनी में समय के व्यतीत हो जाने का आभास ही नहीं हुआ अब लगभग 1:00 बजने वाले हैं । सबसे विनयपूर्ण विदा लेकर हम घर लौट आए । वहां आकर मैंने अपने सारे अनुभव अपने मित्रों के साथ साझा किए । मेरे मित्रों ने भी मुझे कहा कि सच में विज्ञान में किस तरह नवीन खोजों और आविष्कारों के विषय में अनूठी जानकारी मिलती है। उनके बात सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा विज्ञान प्रदर्शनी जाना सही और यथोचित था।

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Answered by Anonymous
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पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी । मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। शाम को लगभग पांच बजे हम प्रगति मैदान पर पहुंचे । प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग 30 देश भाग ले रहे हैं । हमने देखा कि सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं । उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था । अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे । प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था । प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबन्ध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी । प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफ़ी भीड़ थी । हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया । सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए । जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर संचार, कम्प्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था । हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफोन एवं दूर संचार सेवा कैसी होगी इस का एक छोटा-सी नमूना देखा । जापान ने ऐसे टेलिफोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे । वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो सिगरेट की डिबिया जितना था । सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए । उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देख कर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी । हमने वहां भारत में बनने वाले टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि का पंडाल भी देखा । वहां यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है । भारतीय उपकरण किसी भी हालत विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे । कोई घण्टा भर प्रदर्शनी में घूमने के बाद हमने प्रदर्शनी में ही बने रस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए ।

sorry. plsss..........mera net slow hhh...........tum .ere que pr aao tb btaunga bhn..

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