विज्ञापनों का बच्चों पर प्रभाव पर निबंध
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हालांकि इस विषय पर कई बार पढने-सुनने को मिलता है पर आजकल अभिभावकों के विचार और बच्चों के व्यवहार को देखकर तो लगता है बिन मांगे परोसी जा रही यह जानकारी बच्चों को शारीरिक , मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर बीमार बना रही है। खासतौर पर टीवी पर दिखाये जाने वाले ललचाऊ और भङकाऊ विज्ञापनों ने बच्चों के विकास की रूपरेखा ही बदल दी है। खाने से लेकर खेलने तक उनकी जिंदगी सिर्फ और सिर्फ अजब गजब सामानों से भर गयी है। बच्चों को विज्ञापनों के जरिये मिली सीख ने जीवन मल्यों को ही बदल कर रख दिया है । इसी का नतीजा है कि बच्चों के स्वभाव में जरूरत क जगह इच्छा ने ले ली है। इच्छा जो हर हाल में पूरी होनी ही चाहिए नहीं तो............ नहीं तो क्या होता है हर बच्चे के माता-पिता जानते हैं........ :)
आधुनिक समय में जितनी तेजी से औद्योगिकरण फैल रहा है उतनी ही तेजी से विज्ञापन भी बाजार में फेल रहे हैं । विज्ञापन हमारे बच्चों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं बचा है जिसमें विज्ञापन की गुंजाइश ना रही हो । खाने पीने की चीजों से लेकर त्वचा, बाल संबंधित सभी चीजों पर विज्ञापन बनाए जा रहे हैं जिनका असर हमारे बच्चों और उनकी उनके शरीर पर देखने को मिलता है। विज्ञापनों को देखकर काले से गोरा बनने की क्रीम आदि हमारे बच्चे अपने चेहरे पर लगाते हैं और जिससे उनके चेहरे पर कई निशान बन जाते हैं या फिर उनकी त्वचा बहुत खराब हो जाती है इसके अलावा खाने पीने की चीजें भी जिनमें कई हानिकारक तत्व मिले होते हैं हमारे बच्चों के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। विज्ञापन देख देख कर हमारे बच्चे अपनी गाड़ियों और वाहनों को अधिक स्पीड तेजी से चलाते हैं और भयानक दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं इसके साथ साथ वह अपनी पढ़ाई से भी दूर हो जाते हैं । तो यही सब कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनका हमारे बच्चों के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। तथापि यही कहा जा सकता है कि विज्ञापनों का सकारात्मक कम और नकारात्मक प्रभाव अधिक है।