विजय बाबू ....दोनों रूपों में मुस्कुरा दिए class 8
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इस अधूरे वाक्य को वह ऐसे विचित्र किन्तु मादक-मधुर ढंग से गाकर कहता कि सुनने वाले एक बार अस्थिर हो उठते। उसके स्नेहाभिषिक्त कण्ठ से फूटा हुआ उपयुक्त गान सुनकर निकट के मकानों में हलचल मच जाती। छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गोद में लिए युवतियाँ चिकों को उठाकर छज्जों से नीचे झाँकने लगतीं। गलियों और उनके अन्तर्व्यापी छोटे-छोटे उद्यानों में खेलते और इठलाते हुए बच्चों का झुण्ड उसे घेर लेता और तब वह खिलौनेवाला वहीं बैठकर खिलौने की पेटी खोल देता।
बच्चे खिलौने देखकर पुलकित हो उठते। वे पैसे लाकर खिलौने का मोल-भाव करने लगते। पूछते, “इछका दाम क्या है, औल इछका? औल इछका?” खिलौनेवाला बच्चों को देखता, और उनकी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से पैसे ले लेता, और बच्चों की इच्छानुसार उन्हें खिलौने दे देता। खिलौने लेकर फिर बच्चे उछलने-कूदने लगते और तब फिर खिलौनेवाला उसी प्रकार गाकर कहता - बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला...। सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक, लहराता हुआ पहुँचता, और खिलौनेवाला आगे बढ़ जाता।
राय विजयबहादुर के बच्चे भी एक दिन खिलौने लेकर घर आए! वे दो बच्चे थे -- चुन्नू और मुन्नू! चुन्नू जब खिलौने ले आया, तो बोला, “मेला घोला कैछा छुन्दल ऐ।”
मुन्नू बोला, “औल देखो, मेला कैछा छुन्दल ऐ।”
दोनों अपने हाथी-घोड़े लेकर घर भर में उछलने लगे। इन बच्चों की माँ रोहिणी कुछ देर तक खड़े-खड़े उनका खेल निरखती रही। अन्त में दोनों बच्चों को बुलाकर उसने पूछा, “अरे ओ चुन्नू-मुन्नू, ये खिलौने तुमने कितने में लिए हैं?”
मुन्नू बोला, “दो पैछे में! खिलौनेवाला दे गया ऐ।”
रोहिणी सोचने लगी, इतने सस्ते कैसे दे गया है। कैसे दे गया है, यह तो वही जाने। लेकिन दे तो गया ही है, इतना तो निश्चय है!
एक ज़रा-सी बात ठहरी। रोहिणी अपने काम में लग गई। फिर कभी उसे इस पर विचार की आवश्यकता भी भला क्यों पड़ती।