वृक्ष की आत्मकथा को कविता के रूप में लिखें
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जीवन की खुशियों को
तुम्हारी तरह मनाते हैं।
मत काटो भाई!
मेरी बाहों को मत काटो।
मोटी-पतली जंघाओं को,
नन्हे-मुन्ने अंकुरों को
और
लहलहाती पत्तियों को
मत काटो।
चोट लगने पर
मुझे भी दर्द होता है।
मेरा पूरा गात
विचलित हो उठता है।
मेरे भाइयों को मत काटो।
तुम्हारी हर चोट पर
मेरे दिल की कसक से
पीर का नीर
शरीर की आंखों से
अविरल बह चलता है।
अस्तु,
मत काटो भाई
मुझे मत काटो।
तुम्हारी तरह मनाते हैं।
मत काटो भाई!
मेरी बाहों को मत काटो।
मोटी-पतली जंघाओं को,
नन्हे-मुन्ने अंकुरों को
और
लहलहाती पत्तियों को
मत काटो।
चोट लगने पर
मुझे भी दर्द होता है।
मेरा पूरा गात
विचलित हो उठता है।
मेरे भाइयों को मत काटो।
तुम्हारी हर चोट पर
मेरे दिल की कसक से
पीर का नीर
शरीर की आंखों से
अविरल बह चलता है।
अस्तु,
मत काटो भाई
मुझे मत काटो।
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जीवन का आधार वृक्ष हैं,
धरती का श्रृंगार वृक्ष हैं।
प्राणवायु दे रहे सभी को,
ऐसे परम उदार वृक्ष हैं।
ईश्वर के अनुदान वृक्ष हैं,
फल-फूलों की खान वृक्ष हैं।
मूल्यवान औषधियां देते,
ऐसे दिव्य महान...
धरती का श्रृंगार वृक्ष हैं।
प्राणवायु दे रहे सभी को,
ऐसे परम उदार वृक्ष हैं।
ईश्वर के अनुदान वृक्ष हैं,
फल-फूलों की खान वृक्ष हैं।
मूल्यवान औषधियां देते,
ऐसे दिव्य महान...
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