वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास के साथ-साथ पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का
संरक्षण भी आवश्यक है- आप क्या सोचते हैं ?
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सौर ऊर्जा
सूर्य ऊर्जा का सर्वाधिक व्यापक एवं अपरिमित स्रोत है, जो वातावरण में फोटॉन (छोटी-छोटी प्रकाश-तरंग-पेटिकाएं) के रूप में विकिरण से ऊर्जा का संचार करता है। संभवतः पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रासायनिक अभिक्रिया प्रकाश-संश्लेषण को माना जा सकता है, जो सूर्य के प्रकाश की हरे पौधों के साथ होती है। इसीलिए, सौर ऊर्जा को पृथ्वी पर जीवन का प्रमुख संवाहक माना जाता है। अनुमानतः सूर्य की कुल ऊर्जा क्षमता-75000 x 1018 किलोवाट का मात्र एक प्रतिशत ही पृथ्वी की समस्त ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है।
भारत को प्रतिवर्ष 5000 ट्रिलियन किलोवाट घंटा के बराबर ऊर्जा मिलती है। प्रतिदिन का औसत भौगोलिक स्थिति के अनुसार 4-7 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर है। वैश्विक सौर रेडिएशन का वार्षिक प्रतिशत भारत में प्रतिदिन 5.5 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर है। गौरतलब है कि उच्चतम वार्षिक रेडिएशन लद्दाख, पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात में और निम्नतम रेडिएशन पूर्वोत्तर क्षेत्रों में प्राप्त होता है। हम इसका प्रयोग दो रूप से कर सकते हैं- सौर फोटो-वोल्टेइक और सौर तापीय।
चूंकि मानव सौर ऊर्जा का उपयोग अनेक कार्यों में करता है इसलिए इसका व्यावहारिक उपयोग करने के लिए सौर ऊर्जा को अधिकाधिक क्षेत्र से एकत्र करने या दोनों की प्राप्ति हेतु उचित साधन आवश्यक होते हैं। इसलिए इसके दोहन हेतु कुछ युक्तियां उपयोग में लाई जाती प्रकाश-वोल्टीय सेल या सौर सेल।
व्यापारिक उपयोग हेतु सौर शक्ति टॉवर का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है। इसमें सौर ऊष्मकों में अनेक छोटे-छोटे दर्पण इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि सभी सौर विकिरणों को एक छोटे क्षेत्र में संकेन्द्रित करें। इन सौर संकेंद्रकों द्वारा पानी गर्म किया जाता है तथा इस गर्म पानी की भाप विद्युत जनित्रों के टरबाइनों को घुमाने के काम में लाई जाती है। भारत सन् 1962 में विश्व का वह पहला देश बन गया जहां सौर-कुकरों का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया गया।
सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में परिवर्तित करने की युक्तियां सौर सेल (solar Cells) कहलाती हैं। सर्वप्रथम व्यावहारिक सौर सेल 1954 में बनाया गया जो लगभग 1% सौर ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित कर सकता था। वहीं आधुनिक सौर सेलों की दक्षता 25% हैं। इनके निर्माण में सिलिकन का प्रयोग होता है। एक सामान्य सौर सेल लगभग 2 वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल वाला अतिशुद्ध सिलिकन का टुकड़ा होता है जिसे धूप में रखने पर वह 0.7 वाट (लगभग) विद्युत उत्पन्न करता है। जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को जोड़कर इनका उपयोग किया जाता है तो इस व्यवस्था को सौर पैनल कहते हैं। सिलिकन का लाभ यह है कि यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा पर्यावरण हितैषी है तथा पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में सिलिकन दूसरे स्थान पर है परंतु सौर सेल बनाने हेतु विशेष श्रेणी के सिलिकन की उपलब्धता सीमित है। सौर सेल विद्युत् के स्वच्छ पर्यावरण हितैषी तथा प्रदुषण रहित स्रोत है परन्तु फिर भी इनका उपयोग सीमित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हो रहा है।
ऊर्जा मंत्रालय ने छोटे स्थल पर उपयोग के लिए 25 एवं 100 किलोवाट की दो सौर फोटोवोल्टाइक ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना की। ये परियोजनाएं थीं- बड़े शहरी केन्द्रों में व्यस्त समय में भार की बचत करने के प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक भवनों की छतों पर लगायी जाने वाली प्रणालियां एवं दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रिड के अन्तिम सिरों वाले हिस्सों में वितरित ग्रिड टी एवं डी प्रणालियां। इसके अतिरिक्त, 25 किलोवाट की दो अन्य परियोजनाएं कोयम्बटूर के-एस.एन. पलायम और एस.जी. पलायम गांवों में शुरू की गई हैं। पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप में सौर फोटोवोल्टाइक ऊर्जा प्रणालियों के उपयोग से सौर ऊर्जा उपयोग में लायी जा रही है। सौर फोटोवोल्टाइक ऊर्जा संयंत्र की 26 किलोवाट की क्षमता का एक संयंत्र लक्षद्वीप में लगाया गया है।
भाप पैदा करने के लिए सौर ऊर्जा संकेद्रण संग्राहक लगाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि खाना बनाने के लिए विश्व की सबसे बड़ी सौर वाष्प प्रणाली आध्र प्रदेश में तिरूमला में स्थापित की गई। गांवों में डिश और कुकरों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सौर ऊर्जा से हवा को गर्म कर उससे कृषि एवं औद्योगिक उत्पादों को सुखाने की प्रणाली भी इस्तेमाल की जा रही है। इससे पारम्परिक ईंधन की काफी बचत हुई है। फोटोवोल्टाइक प्रदर्शन और उपयोग कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर में दुर्गम स्थानों में स्थित गांवों और बस्तियों में भी बिजली उपलब्ध कराई गई है। खाना पकाने, सुखाने और ऊर्जा को परिष्कृत करने के लिए उद्योगों और संस्थानों में सौर एयर हीटिंग/स्टीम जनरेटिंग प्रणाली को बढ़ावा दिया जा रहा है। सौर ऊर्जा प्रणाली को अनिवार्य बनाने के लिए इमारत उपनियमों में संशोधन किया गया है एवं प्रावधान किया गया है कि ऐसी इमारतें और हाउसिंग परिसर बनाए जाएं जहां पानी गर्म करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हो। परंपरागत बिजली संरक्षण के साथ सर्दियों और गर्मियों में आरामदायक और बेहतर जीवन-स्तर के लिए ऐसी इमारतों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है जिनमें सौर ऊर्जा से जुड़ी प्रणालियों को लगाया जा सके।