Hindi, asked by Nayansiniketa, 9 months ago

वाख कविता मे कवयित्री क्या उपदेश देना चाहती है?
plzz tell me right answer .. whosoever will give right answer or help me ofcourse i will follow him or her ... so plzz ....​

Answers

Answered by sargunjotsingh
3

Explanation:

pls tell the chapter name at least.for your answer

...

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.... ..........................

Answered by bhagyashreelokhande1
0

Answer:

थल-थल में बसता है शिव ही,

भेद ने कर क्या हिंदू-मुसलमां।

ज्ञानी है तो स्वयं को जान,

वही है साहिब से पहचान।

कवयित्री ने उपर्युक्त काव्यांश में शिव किसे कहा है? उनका वास कहाँ बताया गया है?

कवयित्री ने काव्यांश के माध्यम से क्या संदेश दिया है?

स्वयं को जानने से ईश्वर को कैसे पहचाना जा सकता है?

कवयित्री ललद्यद ने ईश्वर का निवास कहाँ बताया है?

कवयित्री ललद्यद किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?

वाख में रस्सी किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?

वाख कविता के आधार में भाव स्पष्ट कीजिए- जेब टटोली कौड़ी न पाई।

वाख (ललद्यद)

Answer

उपर्युक्त काव्यांश में कवयित्री ने अपने आराध्य प्रभु को शिव कहा है। उन्होंने उनका वास प्रत्येक कण में बताया है।

कवयित्री ने काव्यांश के माध्यम से यह संदेश दिया है कि मनुष्य को हिंदू-मुसलमान के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक । वह कहती हैं कि हे मनुष्य! तुम धार्मिक भेदभाव को त्यागकर उसे अपना लो। ईश्वर को जानने से पहले तुम स्वयं को पहचानो अर्थात् आत्मज्ञान प्राप्त करो।

कवयित्री के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक है। वह किसी सीमा में नहीं बंधा हुआ है | उसका वास तो स्वयं मनुष्य के हृदय में है। अतः यदि मनुष्य स्वयं को जान लेगा तो वह ईश्वर को पा लेगा।

कवयित्री ने ईश्वर को सर्वव्यापी बताते हुए उसे हर जगह पर व्याप्त रहने वाला कहा है। वास्तव में ईश्वर का वास हर प्राणी के अंदर है परंतु मत-मतांतरों के चक्कर में पड़कर अज्ञानता के कारण मनुष्य अपने अंदर बसे प्रभु को नहीं पहचान पाता है। इस प्रकार कवयित्री का प्रभु सर्वव्यापी है।

कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

वाख में ‘रस्सी’ शब्द मनुष्य की साँसों के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसके सहारे वह शरीर-रूपी नाव को इस संसार रुपी सागर में खींच रहा है। यह रस्सी अत्यंत कमज़ोर है। यह कब टूट जाए इसका कुछ निश्चित पता नहीं है। अर्थात् मनुष्य की साँसे कब रुक जाए , इसका कुछ पता नहीं है।

भाव – कवयित्री ने अपना सारा जीवन सांसारिक वासनाओं में फंसकर व्यर्थ गँवा दिया। जीवन के अंतिम समय में जब उन्होंने पीछे देखा तो ईश्वर को देने के लिए उनके पास कोई सद्कर्म ही नहीं थे ।

Explanation:

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