विनों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
अब न रहेंगे दलित दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,
क्षुद्र स्वार्थ की खातिर हम तो कभी न गर्हित कर्म करेंगे।
पुण्यभूमि यह भारतमाता, जग की हम तो भीख न लेंगे।
मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
कदली, चावल, अन्न विविध और क्षीर सुधामय लुटा रही है।
आर्यभूमि उत्कर्षमयी यह, गूंजेगा यह गान हमारा
कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।
l need भवार्थ of this poem
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