Hindi, asked by pritysaraf5, 23 hours ago

वीरगाथा स्पीच इन हिंदी​

Answers

Answered by MahimaTripathi1210
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Explanation:

शीश झुकाए कर रहा है, उड़ाकू लड़ाकू जांबाजों को नमन।।

चौड़ा सीना है हर हिन्दोस्तानी का, हो रहा इन वीरों के शौर्य पर गर्व ।

चल रहे हैं पटाखे, फुलझड़ियां ,अनार ; जैसे दीपावाली का हो पर्व।।

लहरा रही है विजय पताका, हर तरफ विजय गान की है गूंज ।

छप्पन सौ मीटर चौड़े हिमाद्रि के सीने से टकरा,हो रही है अनुगूंज ।।

है गर्वित हमारा हिन्द महासागर भी ,चौड़ा हो गया है इसका सीना ।

मार मार कर धूल चटा दी दुश्मन को, पर मानता नहीं, है बहुत कमीना ।।

देखी है इतिहास ने हमारे वीरों की शूरता ,उन का अदम्य साहस।

हर बार मुंह की खाई है दुश्मन ने ,जब जब किया है उसने दुस्साहस।।

पाल कर विशैले सांप अपनी आस्तीन में, नया पैंतरा है उसने अपनाया ।

मार के उनको उन्हीं के बिल में, उसी की नापाक ज़मीं में है दफ़नाया ।।

बुझदिल हो तुम ,कायर हो , छुप छुप कर पीछे से वार करते हो।

नहीं मानते हो समझाने पर, हर बार अपमानित हो कर मरते हो ।।

सुन लो तुम कान खोल कर ,बहुत भयंकर होगा अब की बार का वार।

लेट जाओगे मृत्यु शैय्या पर , पहुंच जाओगे जहन्नुम के उस पार।।

फूला नहीं समां रहा हूं मैं , लेखनी बन गई मेरी दोमुंही तलवार।

सिर कलम करने दुश्मन का ,पैनी हो गई अब इसकी धार ।।

भर के भीतर लाल सुर्ख बारूदी स्याही,, खुशी के पल जी रही है।

श्रृंगार रस का परित्याग कर, आज तो केवल वीर रस पी रही

Answered by CyberBeast
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Explanation:

पहले कहा जा चुका है कि प्राकृत की रूढ़ियों से बहुत कुछ मुक्त भाषा के जो पुराने काव्य-जैसे, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो-आजकल मिलते हैं वे संदिग्ध हैं। इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर जो थोड़ा बहुत विचार हो सकता है, उस पर हमें संतोष करना पड़ता है।

Answered by CyberBeast
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Explanation:

पहले कहा जा चुका है कि प्राकृत की रूढ़ियों से बहुत कुछ मुक्त भाषा के जो पुराने काव्य-जैसे, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो-आजकल मिलते हैं वे संदिग्ध हैं। इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर जो थोड़ा बहुत विचार हो सकता है, उस पर हमें संतोष करना पड़ता है।

Answered by CyberBeast
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Explanation:

पहले कहा जा चुका है कि प्राकृत की रूढ़ियों से बहुत कुछ मुक्त भाषा के जो पुराने काव्य-जैसे, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो-आजकल मिलते हैं वे संदिग्ध हैं। इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर जो थोड़ा बहुत विचार हो सकता है, उस पर हमें संतोष करना पड़ता है।

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