Hindi, asked by amritapatoa3gmailcom, 11 months ago

वारत्र-चित्रण
एकांकी के आधार पर प्रत्येक चरित्र की विशेषताएँ बताते हुए पाँच-पाँच वाक्य लिखिए
(क) सरस्वती
(ख) चंद्रकांत
(ग) कांति​

Answers

Answered by Darshi777
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Answer:

सरस्वती माता विद्या की देवी है।

हमें उनकी पूजा सुबह और शाम को करनी चाहिए।

माता सरस्वती को संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी इत्यादि को इन्हीं की देन माना गया है। ... माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है। सरस्वती जी को विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी भी कहा गया है।

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विद्या की देवी माँ सरस्वती

Webdunia

-पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले

'या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिदैवै सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥'

'जो कुन्द पुष्प, चँद्र, तुषार और मुक्ताहार जैसी धवल है, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत्त है, जिसके हाथ वीणारूपी वरदंड से शोभित हैं, जो श्वेत पद्म के आसन पर विरजित है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव वंदन करते हैं, ऐसी निःशेष जड़ता को दूर करने वाली भगवती सरस्वती! मेरा रक्षण करे।'

सरस्वती के स्वरूप वर्णन में ही सच्चे सारस्वत के लिए मार्गदर्शन है। सरस्वती कुन्द, इन्दु, तुषार और मुक्तहार जैसी धवल हैं, सच्चा सारस्वत भी वैसा ही होना चाहिए। कुन्द पुष्प सौरभ फैलाता है, चँद्र शीतलता देता है, तुषारबिन्दु, सृष्टिका सौंदर्य बढ़ाता है और मुक्ताहार व्यवस्था का वैभव प्रकट करता है। सच्चे सारस्वत का जीवन सौरभयुक्त होना चाहिए।

पुष्प की सुगंध जिस तरह सहज फैलती है, उसी तरह उसके ज्ञान की सुगंध शांति प्रदान करती है उसी तरह सरस्वती का सच्चा उपासक अनेक लोगों के संतप्त जीवन में शांति का स्त्रोत बहाता है। वृक्ष के पत्ते पर पड़ा हुआ ओसबिन्दु मोती की शोभा धारण करके वृक्ष के सौंदर्य को बढ़ाता है, उसी तरह सरस्वती के सच्चे उपासक के अस्तित्व से संसार वृक्ष की शोभा बढ़ती है।

ऐसे मानव के लिए कहना पड़ता है कि 'जयति तेऽधिकं जन्मना जगत्‌।' हार याने कुक्ताहार। अकेले मोती से मोतियों का हार ज्यादा सुंदर लगता है। सरस्वती के उपासकों को भी इस तरह एक साथ, एक सूत्र में बँधकर काम करने की तैयारी रखनी चाहिए। विद्वानों की शक्ति का ऐसा योग किसी भी महान कार्य को सुसाध्य बनाता है।

माँ सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती का उपासक भी मन, वाणी और कर्म से शुभ्र होना चाहिए। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। वीणा संगीत का प्रतीक है। संगीत एक कला है। इस दृष्टि से देखने पर सरस्वती का उपासक संगीत का प्रेमी और जीवन का कलाकार होना चाहिए। संगीत यानी सम्यक्‌ गीत।

वाणी के सुर जिस तरह सुसंवादित होते हैं, उसी तरह हमारे कार्य भी यदि सुसंवादित हों तभी हमारे जीवन में संगीत प्रकटेगा। वीणा को वरदण्ड यानी श्रेष्ण दण्ड कहा है। दंड यदि सजा का प्रतीक हो तो उससे श्रेष्ठ सजा दूसरी क्या हो सकती है? जिसकी सजा में भी संगीत है ऐसा सरस्वत ही दूसरे मानव का हृदय परिवर्तन कर सकता है। मानव को बदलने वाला दंड निश्चित ही श्रेष्ठ है, उसका दर्शन माँ सरस्वती हमें वीणा का वरदण्ड हाथ में रखकर कराती है।

सरस्वती श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान है। सरस्वती उपासक श्वेत अर्थात्‌ विशुद्ध चरित्र का होना चाहिए। उसका आसन पद्म का होना चाहिए, यह बात बहुत ही सूचक है। पद्म आसपास के वातावरण से अलिप्त रहता है। कीचड़ में रहकर भी वह भ्रष्ट नहीं होता। सरस्वती के उपासकों को भी अपने आसपास के समाज में प्रवर्तमान भ्रष्टाचार से इसी तरह मुक्त रहना है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव माँ शारदा को वंदन करते हैं, उसमें भी रहस्य है। माँ सरस्वती ज्ञान और भाव का प्रतीक है, यह बात उनके हाथ में की पुस्तक और माला से समझ में आती है। पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है और माला भक्ति प्रतीक है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनुक्रम में सर्जन, पालन और संहार के देव हैं। इन तीनों को ज्ञान और भाव की जरूरत है।

बिना भाव का सृजन, बिना ज्ञान का पालन और बुद्धिहीन संहार अनर्थ करता है। इसलिए किसी भी कार्य के सृजन में, उस कार्य को टिकाने में और उस कार्य में घुसी हुई बुराई को दूर करने के लिए ज्ञान और भाव दोनों जरूरी है और इसीलिए किसी भी महान कार्य करने वाले महापुरुष को सरस्वती वंदना करनी ही चाहिए।

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती है, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। दूसरों की संपत्ति देखकर मन में अस्वस्थता निर्माण नहीं होना चाहिए। उसे निष्ठापूर्वक अपनी ज्ञानसाधना अखंड करते रहना चाहिए।

विद्वान मानव को धन का अभाव कभी भी नहीं सालना चाहिए। धनिक मानव केवल भोग में ही आनंद को खोजने में भटकता रहता है, जब कि विद्वान को वह आनंद निसर्ग-दर्शन से, जीवन के भाव प्रसंगों और साहित्य के सृजन या आस्वादन से सहज प्राप्त होता है।

माँ शारदा को लाख-लाख वंदन!

धन्यवाद!

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