विस्तृत प्रश्नोत्तर
1. अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार पाकर अर्जुन ने क्या प्रतिज्ञा की ?
2. श्री कृष्ण ने घटोत्कच को युद्ध में क्यों उतारा ?
3. द्रोणाचार्य की मृत्यु किस प्रकार हुई ?
4. अभिमन्यु की वीरता और कौशल का वर्णन कीजिए।
5. भीम ने दुःशासन को किस प्रकार मास ?
6. कर्ण की मृत्यु किस प्रकार हुई ?
7. 'दुर्योधन को भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य से भी अधिक भरोसा कर्ण पर था।'- इस कथन की पुष्टि
कीजिए।
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Answers
Answer:
1) अर्जुन ने अपने भाइयों से कहा अभिमन्यु की मृत्यु कैसे हुई आप लोग मुझे बताओ। तब युधिष्ठिर ने सारी बात सुनाई। युधिष्ठिर अर्जुन की बात सुनकर बेहोश हो गए। थोड़ी देर बाद जब अर्जुन को होश आया तो बोले मैं आप लोगों को सामने यह सच्ची प्रतिज्ञा करता हूं कि यदि जयद्रथ को कौरव का आश्रय छोड़कर भाग नहीं गया। हम लोगों की भगवान श्रीकृष्ण या महाराज युधिष्ठिर की शरण में नहीं आ गया तो कल उसे जरूर मार डालूंगा
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3 ) गुरू द्रोण के इस छल के कारण ही उनका वध करने के लिए पाडंवों ने छल का सहारा लिया था. क्योंकि मनुष्य भूतकाल में किए हुए कर्मों को भूल सकता है लेकिन प्रकृति में निरंतर चलने वाला चक्र ‘कर्म’ सभी के कार्यों अनुसार ही फल देता है. द्रोण का यही पाप उनकी मृत्यु का कारण बना. कुरुक्षेत्र के युद्ध में धृष्टद्युम्न ने अपने पूर्वजन्म का प्रतिशोध लेते हुए गुरू द्रोण की जीवन लीला समाप्त कर दी थी
4) जब अभिमन्यु अपने रथ पर आ बैठा तब सब राजाओं ने एक साथ आकर उसे सब ओर से घेर लिया। तब महाबली अर्जुनकुमार ने ढाल और तलवार ऊपर उठाकर जयद्रथ की ओर देखते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने सिन्धुराज जयद्रथ को छोड़कर, जैसे सूर्य सम्पूर्ण जगत को तपाते हैं, उसी प्रकार उस सेना को संताप देना आरम्भ किया।[2] तब शल्य ने समरभूमि में अभिमन्यु पर सम्पूर्णत: लोहे की बनी हुई एक स्वर्णभूषित भयंकर शक्ति छोड़ी, जो अग्नि शिखा के समान प्रज्वलित हो रही थी। जैसे गरुड़ उड़ते हुए श्रेष्ठ नाग को पकड़ लेते हैं, उसी प्रकार अभिमन्यु ने उछलकर उस शक्ति को पकड़ लिया और म्यान से तलवार खींच ली। अमित तेजस्वी अभिमन्यु की वह फुर्ती और शक्ति देखकर सब राजा एक साथ सिंहनाद करने लगे। उस समय शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने वैदूर्यमणि की बनी हुई तीखी धार वाली उसी शक्ति को अपने बाहुबल से शल्य पर चला दिया। केंचुल से छूटकर निकले हुए सर्प के समान प्रतीत होने वाली उस शक्ति ने शल्य के रथ पर पहुँचकर उनके सारथि को मार डाला और उसे रथ से नीचे गिरा दिया। यह देखकर विराट, द्रुपद, धृष्टकेतु, युधिष्ठिर, सात्यकि, केकयराजकुमार, भीमसेन, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, नकुल, सहदेव तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र 'साधु,साधु' (बहुत अच्छा, बहुत अच्छा) कहकर कोलाहल करने लगे। उस समय युद्धभूमि में पीठ न दिखाने वाले सुभद्राकुमार अभिमन्यु का हर्ष बढ़ाते हुए नाना प्रकार के बाण-संचालजनित शब्द और महान सिंहनाद प्रकट होने लगे। महाराज! उस समय आपके पुत्र शत्रु की विजय की सूचना देने वाले उस सिंहनाद को नहीं सह सके। वे सब-के-सब सहसा सब ओर से अभिमन्यु पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे, मानो मेघ पर्वत पर जल की धाराएँ बरसा रहे हों। अपने सारथि को मारा गया देख कौरवों का प्रिय करने की इच्छा वाले शत्रुसूदन शल्य ने कुपित होकर सुभद्राकुमार पर पुन: आक्रमण किया।[4]
5)दुशासन का वध भीम ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान किया था। भीम ने अपनी गदा से दु:शासन का मस्तक फोड़ा था। दुशासन ने हाथ उठाकर कहा कि देख ये हाँथ इसी हाथ से मैंने भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्र निकाले थे, तब भीम ने उसके उस हाथ को उखाड़ कर फेंक दिया तथा दुशासन की छाती चीरकर उसका रक्त पान करने लगा।
5)कर्ण के रथ से अनजाने में एक बछिया की मृत्यु हो गई थी जिस बात से रुष्ट होकर एक साधु ने उन्हे श्राप दिया था कि , जिस रथ पर चढ़कर अभिमान के प्रभाव में उन्होंने गाय की बछिया का वध किया है, उसी तरह एक निर्णायक युद्ध उनके रथ का पहिया धरती निगल जाएगी और उनकी मृत्यु हो जाएगी।