विशेषण विशेष्य १) हेममयः २) जलमाहरन्ती
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“विशेषण”का शाब्दिक अर्थ है – विशेषता उत्पन्न करने वाला या विशेषक। जो शब्द संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उसे विशेषण कहते हैं। अथार्त जो शब्द गुण, दोष, भाव, संख्या, परिणाम आदि से संबंधित विशेषता का बोध कराते हैं, उसे विशेषण कहते हैं।
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िशेषण एक विकारी शब्द होता है। जैसे- बड़ा, काला, लम्बा, दयालु, भारी, सुंदर, कायर, टेढ़ा–मेढ़ा, एक, दो, वीर पुरुष, गोरा, अच्छा, बुरा, मीठा, खट्टा, आदि।
सरल शब्दों में – जो शब्द विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।
विशेषण लगने के बाद संज्ञा का अर्थ सिमित हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि विशेषण रहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सिमित हो जाता है।
जैसे– ‘घोड़ा’, संज्ञा से घोड़ा-जाति के सभी प्राणियों का बोध होता है, पर ‘काला घोड़ा’ कहने से केवल काले घोड़े का बोध होता है, सभी तरह के घोड़ों का नहीं। यहाँ ‘काला’ विशेषण से ‘घोड़ा’ संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित (सिमित) हो गयी है।
विशेष्य किसे कहते हैं?
जिसकी विशेषता बताई जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं अथार्त जिस संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं। विशेष्य को विशेषण के पहले या बाद में भी लिखा जा सकता है।
दूसरे शब्दों में- विशेषण से जिस शब्द की विशेषता प्रकट की जाती है, उसे विशेष्य कहते है।
जैसे– ‘अच्छा विद्यार्थी पिता की आज्ञा का पालन करता है’ में ‘विद्यार्थी’ विशेष्य है, क्योंकि ‘अच्छा’ विशेषण इसी की विशेषता बताता है।