विश्व के सकल जन गर्मी से कैसे हो रहे हैं ?
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विश्व के सकल जन गर्मी से बेहाल हो रहे हैं और वे गर्मी के प्रकोप व्याकुल हैं।
व्याख्या :
‘उत्साह’ कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला बादलों का आह्वान करते कहते हैं, कि ओ बादल तुम गरजो और बरसं। तुम सारे आकाश को घेरकर मूसलाधार बरसात कर दो। तुम जल रूपी नया जीवन प्रदान करो, क्योंकि गर्मी विश्व के सकल जन गर्मी से बेहाल हो रहे हैं। गर्मी के प्रकोप के कारण इस धरती के निवासी व्याकुल और बेचैन हैं। वह उदास हैं तुम बरसात कर उनके जीवन को शीतलता से भर दो और गर्मी के ताप से व्याकुल धरती को शीतलता प्रदान करो।
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