वैश्वीकरण की प्रकृति या स्वरूप क्या है
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वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।[1]वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण।
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वैश्वीकरण की प्रकृति या स्वरूप निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है।
- वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विश्व बाजारों के बीच पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है।
- वैश्वीकरण में देश का व्यापार देश की सीमाओं तक सीमित न रहकर विश्व बाजारों में निहित तुलनात्मक लागत सिद्धांत के लाभों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करता है।
- वैश्वीकरण का उद्देश्य सभी देशों के सामाजिक व आर्थिक जीवन में सार्वभौमीकरण विकसित करना है। इसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि एक देश में बनने वाली जो वस्तुएं अधिक उपयोगी होती है उन्हें विश्व के सभी बाजारों में खरीदा जाता है।वैश्वीकरण का उद्देश्य यह भी है कि पर्यावरण स्वस्थ रहे, पुरुषों व महिलाओं से समान व्यवहार किया जाए ।
- वैश्वीकरण की विशेषता यह है कि इससे विश्व स्तर के विभिन्न संगठनों का विकास होता है।
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