Hindi, asked by StarTbia, 1 year ago

(६)'विश्वबंधुता वर्तमान युग की माँग' विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लिखिए

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Answered by shailajavyas
328
'विश्वबंधुता वर्तमान युग की माँग' विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लिखिए |

  विश्वबंधुत्व वर्तमान समय की मांग है क्योंकि आज वैश्वीकरण का युग है | विश्व की बढ़ती जनसँख्या ने उत्पादनों की त्वरित प्राप्ति हेतु परस्पर एक दूसरे के साथ सहअस्तित्व को बढावा दिया है | किसी भी देश की छोटी-बड़ी गतिविधि का प्रभाव आज संसार के सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ता है। फलतः समस्त देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भाईचारे के बिना उनका काम नही चलेगा। विश्वबंधुत्व की अवधारणा भारतीय मनीषियों के सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‌' पर आधारित है जो शाश्वत तो है ही, व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधृत भी है। इसमें किसी प्रकार की संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है। सहिष्णुता इसकी अनिवार्य शर्त है।'स्व' और 'पर' के बीच की खाई को पाटकर यह अवधारणा 'स्व' का 'पर' तक विस्तार कर उनमें अभेद की स्थापना का सराहनीय प्रयास करती है।  संसाधनों की बढती मांग और उसकी पूर्ति के मनुष्य-मात्र के अथक प्रयत्न ने दूरियों को कम किया है | फलस्वरूप विश्वबंधुत्व का विशाल दृष्टिकोण वर्तमान स्थितियों का महत्वपूर्ण परिचायक बना है |

Answered by lyrashah
98

विश्वबंधुता वर्तमान युग की माँग' विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लिखिए |

  विश्वबंधुत्व वर्तमान समय की मांग

है क्योंकि आज वैश्वीकरण का युग है | विश्व की बढ़ती जनसँख्या ने उत्पादनों की

त्वरित प्राप्ति हेतु परस्पर एक दूसरे के साथ सहअस्तित्व को बढावा दिया है | किसी भी देश की छोटी-बड़ी गतिविधि का

प्रभाव आज संसार के सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ता है। फलतः समस्त

देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और

भाईचारे के बिना उनका काम नही चलेगा। विश्वबंधुत्व की

अवधारणा भारतीय मनीषियों के सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‌' पर आधारित है जो शाश्वत

तो है ही, व्यापक

एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधृत भी है। इसमें किसी प्रकार की संकीर्णता के

लिए कोई स्थान नहीं है। सहिष्णुता इसकी अनिवार्य शर्त है।'स्व' और 'पर' के बीच की खाई को पाटकर यह अवधारणा 'स्व' का 'पर' तक विस्तार कर उनमें अभेद

की स्थापना का सराहनीय प्रयास करती है।  संसाधनों की बढती मांग और उसकी पूर्ति के मनुष्य-मात्र के अथक प्रयत्न ने दूरियों को कम किया है | फलस्वरूप विश्वबंधुत्व का विशाल दृष्टिकोण वर्तमान स्थितियों का महत्वपूर्ण परिचायक बना है |



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