विदेशी जातीया इसमे घुल-मिल गई
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Poverty is a state or condition in which a person or community lacks the financial resources and essentials for a minimum standard of living. Poverty means that the income level from employment is so low that basic human needs can't be met.
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इन प्रथाओं का प्रचलन सीथियन तथा राजपूत दोनों ही समाजों में था, अतः इस आधार पर कर्नल टॉड राजपूतों को सीथियन जाति का वंशज मानते हैं। इस मत का समर्थन विलियम क्रुक ने भी किया है।
ब्राह्मणों का बौद्ध आदि नास्तिक जातियों से द्वेष था। अतः उन्होंने कुछ विदेशी जातियों को शुद्धि-संस्कार द्वारा पवित्र करके भारतीय वर्ण-व्यवस्था में स्थान प्रदान कर दिया। इन्हीं को राजपूत कहा जाने लगा।
स्मिथ के अनुसार उत्तर-पश्चिम की राजपूत जातियों – प्रतिहार, चौहान, परमार, चालुक्य आदि की उत्पत्ति शकों तथा हूणों से हयी थी। इसी प्रकार गहङवाल, चंदेल, राष्ट्रकूट आदि मध्य तथा दक्षिणी क्षेत्र की जातियाँ गोंड, भर जैसी देशी आदिम जातियों की संतान थी। स्मिथ की धारणा है कि शक-कुषाण आदि विदेशी जातियों ने हिन्दू धर्म ग्रहण कर लिया। वे कालांतर में भारतीय समाज में पूर्णतया घुल-मिल गयी। उन्होंने यहाँ की संस्कृति को अपना लिया। इन विदेशी शासकों को भारतीय समाज में क्षत्रियत्व का पद प्रदान कर दिया गया। मनुस्मृति में शकों को वात्य – क्षत्रिय कहा गया है।
डा.भंडारकर ने भी विदेशी उत्पत्ति के मत का समर्थन किया है। उनके अनुसार अग्निकुल के चार राजपूत वंश – प्रतिहार, परमार, चौहान तथा सोलंकी – गुर्जर नामक विदेशी जाति से उत्पन्न हुये थे। चौहान तथा गुहिलोत जैसे कुछ वंश विदेशी जातियों के पुरोहित थे। उन्होंने आगे बताया है,कि गुर्जर-प्रतिहार वंश के लोग खजर नामक जाति की संतान थे, जो हूणों के साथ भारत में आयी थी। पुराणों में हैहय नामक राजपूत जाति का उल्लेख शक, यवन आदि विदेशी जातियों के साथ किया गया है।