Sociology, asked by poonambarala82, 4 months ago

वृद्ध आश्रम बनाने के लिए कितने प्रतिशत सहयता दी जाती है ​

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Answered by Anonymous
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पिछले दिनों समाचार पत्रों में अमृतसर के खन्ना पेपर मिल के संस्थापक बृजमोहन खन्ना व उनकी पत्नी रेणु खन्ना का बेटों के साथ विवाद का मामला प्रकाशित हुआ था। खन्ना दम्पत्ति का कहना था कि खन्ना पेपर मिल में उनका 32 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन उनके बेटे न तो उन्हे इज्जत देते हैं और न ही उन्हें मिल में जाने की इजाजत देते, जबकि वह मालिक हैं। उनका हक है कि वह मिल में जाकर उसका कामकाज देखें। इस संबंध में उन्होंने हाईकोर्ट में अपने हिस्से का केस भी दायर कर रखा है। गौर हो कि बृजमोहन खन्ना ने 1965 में 5 हजार रुपए से मिल शुरू की थी जो आज 5 हजार करोड़ का कारोबार कर रही है। मिल हर साल 3 लाख 30 हजार करोड़ मीट्रिक टन कागज का उत्पादन करती है, जिसमें 40 हजार मीट्रिक टन री-साइकिल फाइबर का इस्तेमाल होता है। मिल का कागज, कम्प्यूटर स्टेशनरी के अलावा समाचार पत्रों की छपाई में भी इस्तेमाल होता है।

माता-पिता के आरोपों पर उनके बच्चों ने कहा कि वे बार-बार आरोप लगाते हैं, जिन्हें पहले भी अदालत द्वारा झूठा साबित किया जाता रहा है। वह अपनी मर्जी से अमृतसर स्थित पुश्तैनी घर में रह रहे हैं। उन्हें खुशी होगी कि वे गुरूग्राम में आकर उनके साथ रहें। आज्ञाकारी बेटे होने के चलते वे चाहते हैं कि परिवार में मनमुटाव को मिल बैठ कर सुलझा लिया जाए। परिवार और कंपनी दो अलग-अलग हिस्से हैं। राहुल खन्ना का कहना है कि मिल का मामला हाईकोर्ट में लंबित है, जबकि उनके पिता लोअर कोर्ट से इसे हार चुके हैं। वह अदालत के निर्देशों के पाबंद हैं, किसी भी पार्टी के लिए इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। वह हमेशा अपने पिता को बड़े आदर व मान से बुलाते हैं और उन्हें मिल के चेयरमैन की तरह ही रखा है। वह अपनी कंपनी के हित और उन 5 हजार स्टाक होल्डर्स के परिवारों के भविष्य के लिए काम कर रहे हैं।

ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी 84 वर्षीय प्रेमनाथ राजयादा का है जो ग्वालियर के वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। उनकी तबीयत खराब होने पर उनको जय आरोग्य अस्पताल (जेएएच) में भर्ती कराया गया है। यहां उनके साथ कोई अपना नहीं है, जबकि गोविंदपुरी, कानपुर में उनका भरा पूरा परिवार है। वे करोड़ों की संपत्ति के मालिक थेे, मगर सारी संपत्ति लेने के बाद बहू-बेटे ने घर से निकाल दिया। तीन माह पहले प्रेमनाथ रायजादा ग्वालियर आए थे और जब यहां कोई ठिकाना नहीं मिला तो लक्ष्मी गंज स्थित वृद्धाश्रम पहुंचे। उनको मथुरा में परिवार ने छोड़ दिया था, जहां से वह वे ग्वालियर पहुंचे थे। रायजादा की कानपुर में टॉकीज और दुकानें थीं। ट्रांसपोर्ट का कारोबार था। उनके बेटे रोहित उर्फ आनंद और परिवार ने पहले पूरी संपत्ति अपने कब्जे में कर ली और फिर बर्बाद भी कर दी। रायजादा का ख्याल रखने वाले लोगों ने उनके बेटे को फोन किया तो उसका कहना था कि ग्वालियर आने के लिए पैसे नहीं हैं। इसके बाद बेटे के बैंक खाते में 500 रूपये डलवाए लेकिन वह नहीं आया।

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