विद्यालय बिना अध्ययन लाभ और हानि पर निबंध
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शिक्षा व्यक्ति के अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करता हैं ,शिक्षा मनुष्य में स्वभाव सिद्ध है कोई भी शिक्षा बाहर से नहीं आती सब अंदर ही है हम जो कहते हैं कि मनुष्य जानता है यथार्थ में मनुष्य की मानसशास्त्र – संगत भाषा में हमें कहना चाहिए कि वह आविष्कार करता है किसी भी बात को प्रकट करता है ,व्यक्ति जो कुछ सीखता है वह वास्तव में एक अविष्कार करना ही है हम कहते हैं कि न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार किया लेकिन उसके मन में यह बात थी उस समय आया तो उसने जान लिया कि उसने उसका हल ढूंढ निकाला, संसार को जो कुछ भी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त होता है वह सब मन से ही निकला है मन से शिक्षा ओर शिक्षा से अविष्कार और शिक्षा से विकास निश्चित है परंतु यह सब की धारणा होती है।
शिक्षा चरित्र का गठन करते हैं: मनुष्य का चरित्र उसकी विभिन्न प्रवृत्तियों का समिष्ट है ।उसके मन की समस्त झुकावों का योग्य है। सुख और दुख ज्यो -ज्यो व्यक्ति की आत्मा पर से होकर गुजरते हैं वे उस पर अपनी- अपनी छाप या संस्कार छोड़ जाते हैं और इस संस्कारों का प्रभाव व्यक्ति की शिक्षा पर भी निर्भर करता है हम जो शिक्षा लेते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं और यह हमारे विचारों के प्रभाव से होता है जिस प्रकार शिक्षा थोड़ी थोड़ी ग्रहण करने के बाद हमारे चरित्र का निर्माण करती हैं उसी तरह व्यक्ति का चरित्र का गठन होता है जैसे लोहे के टुकड पऱ हथौडे पर हल्की चोट के सामान है ,और हम जो बनना चाहते हैं वह बन जाते हैं उसी प्रकार शिक्षा से व्यक्ति के विचार सजीव होते हैं उसकी दौड़ बहुत दूर तक होती है इसलिए व्यक्ति को विचारों में सावधान रहना चाहिए और अपनी शिक्षा की ओर अग्रसर होना चाहिए और अपने चरित्र का निर्माण में शिक्षा का प्रयोग अत्यधिक करना चाहिए ।
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शिक्षा क्या है?
शिक्षा शब्द संस्कृत के ‘शिक्ष’ धातु से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, सिखना या सिखाना। अर्थात जिस प्रकिया द्वारा अध्ययन और अध्यापन होता है, उसे शिक्षा कहते हैं।
शिक्षा की विभिन्न परिभाषाएं
गीता से अनुसार, “सा विद्या विमुक्ते”। अर्थात शिक्षा या विद्या वही है जो हमें बंधनों से मुक्त करे और हमारा हर पहलु पर विस्तार करे।
टैगोर के अनुसार, “हमारी शिक्षा स्वार्थ पर आधारित, परीक्षा पास करने के संकीर्ण मक़सद से प्रेरित, यथाशीघ्र नौकरी पाने का जरिया बनकर रह गई है जो एक कठिन और विदेशी भाषा में साझा की जा रही है। इसके कारण हमें नियमों, परिभाषाओं, तथ्यों और विचारों को बचपन से रटना की दिशा में धकेल दिया है। यह न तो हमें वक़्त देती है और न ही प्रेरित करती है ताकि हम ठहरकर सोच सकें और सीखे हुए को आत्मसात कर सकें।”
महात्मा गांधी के अनुसार, “सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है। इस तरीके से हम सार के रूप में कह सकते हैं कि उनके मुताबिक़ शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास था।”
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “शिक्षा व्यक्ति में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।”
अरस्तु के अनुसार, “शिक्षा मनुष्य की शक्तियों का विकास करती है, विशेष रूप से मानसिक शक्तियों का विकास करती है ताकि वह परम सत्य, शिव एवम सुंदर का चिंतन करने योग्य बन सके।”
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