Hindi, asked by shailendra4126, 10 months ago

विद्यार्थी जीवन पर अनुच्छेद plz tell me​

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Answered by Gautam308
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विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का यह सुनहला समय है जिसमें वह विद्यालय में ज्ञानोपार्जन के लिए जाता है . यह जीवन प्रथम पच्चीस वर्ष तक माना जाता है . बच्चे इसी समय सीखते हैं . इस समय में वह जो कुछ भी सीख पाटा है वही उसके भविष्य का मार्ग दर्शन करता है . प्राचीन काल में विद्यार्थी विद्या का अर्जन दूसरे तरीके से करता था . उस समय में उसे घर छोड़कर जंगलों या आश्रमों में गुरूओं के यहाँ पढना पढता था .

विद्यार्थी जीवन तपस्या का जीवन है . उस समय विद्यार्थी को पूर्ण साधक बनकर विद्योपार्जन करना पढता था . आजकल विद्याथी जीवन बड़ा ही सुखमय एवं विभिन्न प्रकार की सुविधाओं से युक्त है . प्राचीन काल में व्वाहरिक शिक्षा मिलती थी जबकि वर्तमान में केवल पुस्तकीय ज्ञान का ही सहारा लेना पढ़ता है . प्राचीन काम में विद्याथी का मुख्य उदेश्य विद्यार्जन तक ही सीमित था , परन्तु आज के विद्याथी जीवन का बाहरी वस्तुओं से भी सम्बन्ध रखते हैं . आज छोटे - छोटे बच्चों में भी राजनीति घर कर गयी है . एक आदर्श विद्याथी के निम्न लक्षण है -

काकचेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी, गहत्यागी, विधार्थी पञ्चलक्षणम्॥

विधार्थी जीवन ज्ञान प्राप्ति का समय है . उसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए काक की तरह ,बगुले की तरह ध्यान ,कुत्ते की तरह नींद ,अल्पहारी तथा घर त्यागी आदि निमयों का पालन करना चाहिए . इस समय उसे आलस्य त्याग कर मानसिक एवं शारीरिक परिश्रम करना चाहिए . परिश्रमशील छात्र का जीवन ही सदा सुखमय रहता है . विद्यार्थी ही राष्ट्र के भाग्य विधाता है . आज के विद्यार्थी ही कल के भावी देश के कर्णधार होंगे . विधार्थियों को इस समय में पूर्ण अनुशासित होकर अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए . विधार्थी जीवन आदर्श का जीवन है . शिक्षकों एवं अभिभावकों को इस समय सतर्क होकर विधार्थियों के चरित्र का निर्माण करना चाहिए .









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Answered by Anonymous
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Answer:

विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ है, क्योंकि समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर करती है? अतः विद्यार्थी जीवन पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को स्वर्णिम काले है। इसी काल में भावी जीवन की तैयारी की जाती है तथा शक्तियों का विकास किया जाता है। इस काल में बालक के मस्तिष्क रूपी स्लेट पर कुछ अंकित हो जाता है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।

विद्यार्थी जीवन की महत्ता को जानते हुए प्राचीन काल में विद्यार्थी को घरों से दूर गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था, गुरु के कठोर अनुशासन को उसे पालन करना पड़ता था। गुरु अपने शिष्यों को तपा-तपाकर स्वर्ण बना देता था।

लेकिन आधुनिक युग में विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरु ओं के कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धन से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति सम्मान के भाव की कमी पाई जाती है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इन्हीं कारणों से आज विद्यार्थी अनुशासनहीन पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है।

आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है

काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।

अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन पंचलक्षणं ॥

अर्थात विद्यार्थी को कौए के समान चेष्ठावान, बगुले के समान एकाग्रचित्त, कुत्ते के समान कम सोने वाला, कम खाने वाला तथा विद्याध्ययन के लिए त्याग करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक विद्यार्थी में इन गुणों का अभाव पाया जाता है। विद्यार्थी ही देश के भविष्य होते हैं। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

आज के विद्यार्थी वर्ग के पतन के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों को भी कर्तव्य है कि वे भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हों।

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