वैधानिक तरलता अनुपात’ क्या होता है?
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वैधानिक तरलता अनुपात के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक के पास मौद्रिक नियंत्रण का एक अन्य महत्वपूर्ण साधन वैधानिक तरलता अनुपात है जो नगदी रिजर्व अनुपात के पूरक के रूप में कार्य करता है बैंकिंग विनिमय एक्ट 1949 के अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने सावधि और मांग जमाओ का 20% तरलता अनुपात के रूप में अपने पास रखना अनिवार्य था इस तरलता अनुपात में नगदी रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के पास बैंक के नकदी सेस सोना तथा ऋण मुक्त मान्य प्रतिभूतियां शामिल होते थे परंतु जब भी रिजर्व बैंक नकदी रिजर्व अनुपात में वृद्धि करता था तो व्यापारिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियां बेचकर अपनी तरलता शक्ति बढ़ाकर नकदी रिजर्व अनुपात की वृद्धि को विफल बना देते थे इसी कमी को पूरा करने के लिए बैंकिंग एक्ट के 1962 में संशोधन द्वारा बैंकों की एसएलआर को 25% कर दिया गया परंतु इसमें रिजर्व बैंक के पास रखे गए नकदी रिजर्व अनुपात सम्मिलित नहीं थे बैंकिंग सिस्टम में तरलता वृद्धि और परिणाम मुद्रा प्रसार कम करने के लिए एसएलआर को नवंबर 1972 मैं 25% से 30% किया गया और इसके पश्चात इस इसमें निरंतर वृद्धि की जा रही थी इस प्रकार 22 सितंबर 1990 को 38 . 5 प्रतिशत कर दी गई थी परंतु स्फीति दर में कमी आने तथा व्यापारिक बैंकों द्वारा उधार देने हेतु अधिक निधियां उपलब्ध कराने के लिए एसएलआर को पिछले कुछ वर्षों में कम करके 13 अप्रैल 1996 को 25% कर दिया गया एसएलआर का लाभ यह है कि यह सीआरआर के साथ लागू होने पर बैंकों की तरलता को नियंत्रित करके व्यापार और उद्योग ऋण देने की सीमा निर्धारित करना है जिससे स्फीति दबाव कम करने में मौद्रिक नीति सफल होती है दूसरे सरकार को अधिक संसाधन उपलब्ध होते हैं |
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भारतीय रिजर्व बैंक ने 3 फ़रवरी 2015 को अपने छठे द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में 0.50 प्रतिशत के कटौती की घोषणा की. जिसके बाद यह 22 प्रतिशत से घट कर 21.5 प्रतिशत हो गई. ... एसएलआर की अधिकतम और न्यूनतम सीमा 40 प्रतिशत और 25 प्रतिशत हैं.