वायु प्रवाह क्यों और कैसे होता है
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वायु की ही तरह, जल भी पर्यावरण का दूसरा अजैविक घटक है और सभी जीवित प्राणियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। जल प्रचुर मात्रा में मिलने वाला और नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है। पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग जल से ढका है। जल प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था के साथ ही संयुक्त रूप में पाया जाता है। जल के अलग-अलग गुणधर्म इसे बहुत ही उपयोगी, महत्त्वपूर्ण और दैनिक जीवन के लिये आवश्यक बना देते हैं। हम इस पाठ में वायु और जल के विषय में पढ़ेंगे।
उद्देश्य
1. वायु के विभिन्न अवयवों की उनकी मात्रा के अनुसार तालिका बना सकेंगे ;
2. वायु के विभिन्न अवयवों (O2, N2, CO2) की महत्ता और उनके उपयोग को समझा सकेंगे एवं वायु दाब व हमारे लिये उसके उपयोग का संक्षिप्त विवरण दे सकेंगे;
3. वायु के विभिन्न प्रदूषकों, उनके विभिन्न उत्पन्न परिणामों एवं इन वायु प्रदूषकों के नियंत्रण के उपायों को सूचीबद्ध कर सकेंगे;
4. जल के विभिन्न स्रोतों की पहचान एवं उनके गुणों का उल्लेख कर सकेंगे;
5. पेय (पीने योग्य) एवं अपेय जल में अन्तर स्पष्ट कर सकेंगे एवं जल को पीने योग्य बनाने के लिये साधारण तरीकों की व्याख्या कर सकेंगे;
6. जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों उनके द्वारा उत्पन्न परिणामों एवं जल प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को वर्णित कर पाएँगे;
7. जल संरक्षण के महत्त्व एवं बारिश आधारित जल कृषि (संवर्धन) को मान्यता दे पाएँगे।
26.1 वायु का संघटन
प्राचीन दार्शनिक वायु को एक महत्त्वपूर्ण तत्व मानते थे। सन 1674 में मायो ने यह सिद्ध किया कि वायु तत्व नहीं है वरन दो पदार्थों का मिश्रण है जिनमें एक सक्रिय है व दूसरा निष्क्रिय। सन 1789 में लेवोसियर ने सक्रिय तत्व को ऑक्सीजन नाम दिया व कहा कि आयतन के अनुसार यह वायु का 1/5 वां भाग है जबकि निष्क्रिय तत्व को नाइट्रोजन कहा गया और आयतन के अनुसार वह वायु का लगभग 4/5 वां भाग है। वायु में ऑक्सीजन व नाइट्रोजन का अनुपात आयतन के अनुसार लगभग 1: 4 है।
वायु गैसों का एक मिश्रण है। समुद्र सतह पर शुष्क वायु का संघटन तालिका 26.1 में दिया गया है।