'व्यक्ति को मैं नहीं जानता था, हताशा को जानता था' कहते ही वे 'जानने' की हमारी उस जानी पहचानी रूढ़ि को तोड़ देते हैं जो व्यक्ति के नाम, पते, उम्र, ओहदे या जाति से जानने को जोड़ती है। यदि हम किसी व्यक्ति को उसकी हताशा, निराशा, असहायता या उसके संकट से नहीं जानते तो हम कुछ नहीं जानते।
1) व्यक्ति को जानने की परंपरागत तरीका कौन-सा है?
2) 'जानना' शब्द की लेखक की व्याख्या से क्या आप सहमत हैं? अपनी राय पर टिप्पणी लिखें ।।
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'व्यक्ति को मैं नहीं जानता था, हताशा को जानता था' कहते ही वे 'जानने' की हमारी उस जानी पहचानी रूढ़ि को तोड़ देते हैं जो व्यक्ति के नाम, पते, उम्र, ओहदे या जाति से जानने को जोड़ती है। यदि हम किसी व्यक्ति को उसकी हताशा, निराशा, असहायता या उसके संकट से नहीं जानते तो हम कुछ नहीं जानते।
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व्यक्ति को जानने की परंपरागत तरीका कौन-सा है?
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