Hindi, asked by dileshwarmaitry14, 1 month ago

वह जालपा, जो अपने घर बात-बात पर मान किया करती थी, अब सेवा, त्याग और सहिष्णुता की मूर्ति थी।जग्गो मना करती रहती, पर वह मुंह-अंधेरे सारे घर में झाडू लगा आती, चौका-बरतन कर डालती, आटा गंधकर रख देती, चूल्हा जला देती। तब बुढ़िया का काम केवल रोटियां सेंकना था। छूत-विचार को थी उसने ताक पर रख दिया था

Answers

Answered by vkchandra638
0

Answer:

gshsu

Explanation:

usudhhhdhdshhsshhs

Answered by shishir303
0

सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-

वह जालपा, जो अपने घर बात-बात पर मान किया करती थी, अब सेवा त्याग और सहिष्णुता की मूर्ति थी। जग्गो मना करती रहती, पर वह मुंह अंधेरे सारे घर में झाडू लगा आती, चौका-बर्तन कर डालती। आटा गूंथकर रख देती, चूल्हा जलादेती । तब बुढ़िया का काम केवल रोटियां सेकना था।

संदर्भ : ये गद्यांश मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित ’गबन' नामक उपन्यास का अंश है। इस गद्यांश में 'गबन' उपन्यास की एक पात्र जालपा के परिवर्तित स्वभाव के बारे में बताया गया है।

व्याख्या : गबन कहानी की नायिका जालपा जो कभी हर बात पर नाज नखरे किया करती थी। बात बात पर बहस किया करती थी। अपना अहंकार दिखाया करती थी। अब वह सेवा और त्याग और सहनशीलता की मूर्ति बन चुकी थी। अब वह घर के सारे काम करने लगी थी। वह सुबह सुबह उठ जाती और पूरे घर में झाड़ू लगाती। घर के सारे बर्तन माँजती। जग्गों उसे काम करने के लिए मना करती रहती, लेकिन वह नहीं मानती थी। वो आटा गूँथकर रख देती और चूल्हा-चौका का सारा काम कर देती। चूल्हा जलाकर रख देती थी। तब बुढ़िय का काम केवल रोटी सेंकना भर रह जाता था। इस तरह जालपा के स्वभाव में अभूतपूर्व परिवर्तन आ चुका था।

Similar questions