वह तोड़ती पत्थर कविता के अंत में मैं तोड़ती पत्थर के प्रयोग का क्या आशय है
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‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता में पत्थर के प्रयोग का आशय धनाढ्य और श्रमिक वर्ग के बीच की असमानता की दीवार है।
कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता के माध्यम से पत्थर का प्रतीक बनाकर धनाढ्य वर्ग के लोगों द्वारा निर्धन और वंचित वर्ग के लोगों के शोषण के कारण उत्पन्न कठिनाइयों को बनाया पत्थर की उपमा दी है।
कवि के अनुसार एक तरफ विशाल ऊंचे भवन हैं, जिनके चारों तरफ सुंदर वैभव और सुंदरता दिखाई पड़ी है। जो पत्थर की दीवारों से घिरे हैं। वहीं दूसरी तरफ इन्हीं भवनों के सामने मौसम की मार के बीच, धूप में, बारिश में, सर्दी में, अपने जीवन यापन के लिए जूझते श्रमिक वर्ग के लोग हैं। यह हमारे समाज में फैली असमानता को दर्शाता है। कवि का पत्थर से आशय इसी असमानता की दीवार से है।
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