valmiki jayanti essay in 250 words in hindi
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महर्षि वाल्मीकि हमारे देश के महानतम कवियों मे से एक है। वह चारशानी और सुमाली के पुत्र थे। उनका जन्म भारत मे ही हुआ था परन्तु उनकी जन्मतिथि आज भी विवादों मे ही है, क्योकि उनके जन्म के बारें मे कोई पुख्ता सबूत नही मिला है जिससे उनकी सही जन्म तिथि के बारे मे कुछ भी कहा जा सके।
लेकिन रामायण के समयकाल को शामिल करते हुए यह कहा जाता है, कि वह पहली शताब्दी से लेकर पांचवीं शताब्दी के बीच के रहे होगें। उनका पुराना नाम रत्नाकरदाह था, लेकिन अपने महान कार्यो के कारण वो महर्षि वाल्मिकी के नाम से चर्चित हुए। वह हमारे देश के सबसे प्रचीन कवि है।
संत वाल्मीकि को “महर्षि” और “आदि कवि” नामक उपाधियों से भी सम्मानित किया गया है, जहां ‘महर्षि’ का अर्थ ‘महान संत’ या ‘महान ऋषि’ है, और ‘आदि कवि’ का अर्थ है ‘प्रथम कवि’। यह वही है जिन्होने हमें संस्कृत के पहले छन्द या श्लोक के बारें मे बताया। यह हमारे हिन्दू महाकाव्य के महान पवित्र पुस्तक “रामायण” की लेखक भी है।
महर्षि वाल्मीकि जयंती (परगट दिवस के रुप मे भी जाना जाता है), हमारे हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध त्योहारों मे से एक है। यहां जयंती शब्द से ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते है कि यह महान ऋषि वाल्मीकी के जन्मदिवस के अवसर के रुप मे मनाया जाता है। यह पूरे चांद के दिन यानी कि पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि के कई मंदिर और कई वाल्मीकि तीर्थ स्थल है, जो कि वाल्मीकि के जन्म दिवस के अवसर पर सजाए जाते है। यहां वाल्मीकि की प्रतिमा को फूलों और फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। यह त्योहार पूरे जोश और उत्साह के साथ पूरे भारत मे मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि जी प्राचीनकाल के सर्वश्रेष्ठ लेखक तथा सम्मानित ऋषि थे। हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण की रचना उन्होंने की। रामायण, भगवान राम के जीवन को दर्शाने वाली पहली संस्कृत पुस्तक है। हिंदू पारंपरिक कैलेंडरों के अनुसार, हर वर्ष अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है।महर्षि वाल्मीकि केवट जाति से संबंधित थे। वे महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र “वरुण” के पुत्र थे। ऐसा मत है कि महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि जी ‘रत्नाकर’ थे। अपने परिवार के पालन के लिए वह लोगों को लूटते थे। एक बार वन में उन्हें नारद मुनि मिले, रत्नाकर उन्हें लूटने के लिए आगे बढ़े तभी नारद जी ने उनसे पूछा कि तुम यह पाप का काम क्यों कर रहे हो? उत्तर देते हुए रत्नाकर बोले कि अपने परिवार के पालन पोषण के लिए। इस पर नारद मुनि ने प्रश्न किया कि तुम अपने परिवार के हित के लिए जो यह लूटपाट का पाप कर रहे हो क्या वे तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे? यह सुनकर रत्नाकर स्तब्ध हो जाते हैं।
नारद जी कहते हैं कि हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे इस पाप के भागीदार नहीं बनते हैं तो तुम उनके लिए यह अपराध क्यों कर रहे हो?
इन बातों ने रत्नाकर के ज्ञान को प्रकाश दिया और उन्होंने नारद जी के चरण पकड़कर डाकू का काम छोड़कर, तपस्या में लीन हो गए। नारद जी द्वारा दिए गए राम नाम के उपदेश से रत्नाकर महर्षि वाल्मीकि के रूप में प्रज्वलित हुए। आज वो समाज के एक प्रतिष्ठित तथा प्रसिद्ध लेखक तथा ऋषि के रूप में जाने जाते हैं।पारंपरिक कैलेंडरों के आधार पर, महर्षि वाल्मीकि की जयंती हर साल अश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को धूम – धाम से मनाई जाती है। विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा सरकारी दफ्तरों में महर्षि वाल्मीकि जयंती के दिन वाल्मीकि जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में महर्षि वाल्मीकि जयंती के दिन शोभायात्रा निकाली जाती है। रैली, जुलूस तथा झांकियों के साथ जयंती को उत्साह के साथ मनाया जाता है।
भगवान राम की गाथा को लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि जयंती के दिन श्रीराम के भजनों का आनंद लिया जाता है। हर जगह राम राम का जयघोष होता है। वाल्मीकि जी के जीवन को याद किया जाता है तथा प्रेरणा ली जाती है।