Van gram kise kaha jaata hai
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विजय द्विवेदी, बहराइच : मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही रह गया। जो छिपा था आंसुओं में वह ढल के बह गया। यह फिल्मी गीत वन ग्राम के लोगों पर सटीक बैठती है। पांच वन ग्रामों में सिर्फ गोकुलपुर को राजस्व गांव का दर्जा दिया गया है। अन्य गांवों को मिलने वाले अधिकार की रोशनी पर काले बादल की छाया मंडराने लगी है। वन ग्रामवासी हैरान हैं। ठगे महसूस कर रहे हैं। प्रशासन भले ही इतराता झूमता और अपनी पीठ थपथपाता नजर आ रहा हो, लेकिन आजादी के 71 वर्षों का दर्द एक बार फिर चार वन ग्राम वासियों के आंसुओं से छलक उठा है।
भारत-नेपाल सीमा पर बसे बहराइच जिले के मिहीपुरवा ब्लॉक के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग के सुरम्य जंगलों की सुंदर छटा देखने के लिए विश्वभर के पर्यटक आते हैं। इस खूबसूरती के बीच बसे वन ग्रामों के निवासियों की ¨जदगी की कालिमा को शायद ही किसी ने देखने की कोशिश की हो। वन विभाग के अभिलेखों के अनुसार 1865 में जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत ने वन प्रबंधन की शुरूआत की तो वनों के विकास में बेगार करने के लिए इन लोगों को यहां बसाया गया था। वनवासियों से आबाद गोकुलपुर, बिछिया, भवानीपुर, टेढ़ी व ढकिया की आबादी तकरीबन 8456 है और सभी गांव गैर आदिवासी हैं। बिछिया के सरोज यादव, गुलाम रसूल, भवानीपुर के रामजस, दुलारे, टेढ़ी की भानुमती, लक्ष्मीना व ढेकिया के गीता प्रसाद कहते हैं कि वन ग्रामवासियों की अधिकार विहीन गुलामों जैसी ¨जदगी के दर्द से न तो अधिकारी पसीज रहे हैं और न शासन। संस्था देहात के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ.जितेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि वन ग्रामीणों का संगठन वन ग्राम अधिकार मंच खड़ा करके इनकी बुनियादी सुविधाओं के लिए पुन: वर्ष 2003 में आंदोलन शुरू किया। वर्ष 2006 में अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वनवासी अधिनियम 2006 के नाम से कानून और 2007 में इसके नियम लागू हुए। इसका फायदा सिर्फ एक ही गांव को मिला। एसडीएम कीर्ति प्रकाश भारती बताते हैं कि यह गांव वन विभाग के कोर जोन में हैं। शासन की बैठक में ही कुछ निर्णय लिया जा सकता है।
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urbar mette ko
gram davta urvar mette ko bata ya ha ....