Vano ka arthik mehatva hindi
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संजीव गुप्ता, नई दिल्ली :
वृक्ष और वन क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से भी खासा महत्व रखते हैं। किंतु देश की राजधानी इस दिशा में उदासीन ही रही है। यहां न तो कभी इस संबंध में सोचा गया है और न ही कोई प्रयास किया गया। यही वजह है कि आर्थिक लाभ की बजाए यहां तो मौजूदा वन व वन क्षेत्र भी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक साबित हो रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक वन और वृक्ष प्रकृति व पर्यावरण संतुलन के लिए तो जरूरी होते ही हैं, लकड़ी, दवाएं, फल सब्जी, जल संरक्षण, पर्यटन की दृष्टि से कारोबार की असीम संभावनाएं भी रखते हैं। देश के बहुत से हिस्सों में इन सब का करोड़ों रुपये का कारोबार होता भी है। लेकिन दिल्ली में इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं गया। दरअसल, 1993 से पहले यहां दिल्ली सरकार का अस्तित्व था ही नहीं, यह केंद्र शासित प्रदेश था। जबकि बाद के 24 सालों में भी हरित क्षेत्र बढ़ाने के बाबत कछुआ गति से ही थोड़ा बहुत काम हो पाया है।
दिल्ली में हरित क्षेत्र के अंतर्गत वनाच्छादित क्षेत्र
अत्यंत गहन वन : 1.40 वर्ग कि.मी.
सामान्य गहन वन : 7.02 वर्ग कि.मी.
मुक्त वन : 1.88 वर्ग कि.मी.
उप जोड़ : 10.30 वर्ग कि.मी.
हरित क्षेत्र से बाहर वनाच्छादित क्षेत्र
अत्यंत गहन वन : 5.54 वर्ग कि.मी.
सामान्य गहन वन : 50.13 वर्ग कि.मी.
मुक्त वन : 122.80 वर्ग कि.मी.
उप जोड़ : 178.47 वर्ग कि.मी.
कुल वनाच्छादित क्षेत्र : 188.77 वर्ग कि.मी.
वृक्षाच्छादित क्षेत्र : 111 वर्ग कि.मी.
कुल वन एवं वृक्षाच्छादित क्षेत्र : 299.77 वर्ग कि.मी.
इन बिंदुओं पर काम हो तो मिल सकता है फायदा
1. लकड़ी के कारोबार का क्षेत्र हर जगह बहुत बड़ा है।
2. तमाम फल-सब्जियां वृक्षों की ही उपज होती हैं।
3. औषधि निर्माण में विभिन्न रूपों में जड़ी बूटियां और वृक्ष अहम भूमिका निभाते हैं।
4. पर्यटन की दृष्टि से वन क्षेत्र का बड़ा रोल रहता है।
5. उपयोगी वृक्ष जलवायु, पर्यावरण, वायु प्रदूषण, बाढ़, तूफान, सिंचाई एवं जलसंरक्षण में भी कारगर भूमिका अदा करते हैं।
6. नदियों के बहाव और उफान को नियंत्रित करने में भी वन क्षेत्र अहम रोल अदा करते हैं।
7. उपयोगी वृक्ष भूमि की उर्वरता भी बढ़ाते हैं जोकि बेहतर खेती के लिए मायने रखती हैं।
8. मधुमक्खियों और तितलियों का अस्तित्व भी वन क्षेत्र पर ही टिका है।
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वनों के आर्थिक पहलु पर नि:संदेह काम होना चाहिए। यह किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था की मजबूती का बड़ा कारक बन सकता है। हालांकि दुर्भाग्य ही है कि दिल्ली में इस संबंध में अब तक कुछ नहीं किया गया है। यहां तो उपयोगी वृक्षों पर भी अनुपयोगी वृक्ष ज्यादा भारी हैं।
फैयाज ए खुदसर, पर्यावरणविद
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यह सही है कि दिल्ली के कुल वन क्षेत्र में 60 फीसद में विलायती कीकर फैला हुआ है। इसमें भी संदेह नहीं कि वनों के विभिन्न आर्थिक पहलुओं पर अभी तक कोई खास काम नहीं हुआ है। लेकिन जो भी वन क्षेत्र हैं वहां पर रोजगार के अवसर तो सृजित हो ही रहे हैं। कितने ही अधिकारी कर्मचारी वहां स्थायी तौर पर नियुक्त हैं जबकि जब तब वहां ठेकेदार के श्रमिक भी काम करते रहते हैं। रही बात अनुपयोगी वृक्षों को हटाकर उनकी जगह उपयोगी पेड़ लगाने की तो उस दिशा में भी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हमने सेंट्रल रिज पर काम शुरू कर दिया है। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए हमने 10 साल का लक्ष्य तय किया है।
-अर्चना सिंह, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक, दिल्ली सरकार
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