वर्ण-संयोजनं कुरुत। (वर्ण-संयोजन कीजिए।)
(क) व् + ऋ + क् + ष् + अः
(ख) च् + इ + त् + र् + अ + म्
(ग) श् + र् + अ + म् + अः
(घ) स् + अ + न् + त् + अः
ङ) क् + ऋ + प् + आ
(च) प् + र् + ए + म् + अ
(छ) श् + अ + क् + त् + इः ।
(ज) द् + व् + आ + प् + अ + र् + अः
Answers
Answer१. वर्णविचार
Vowels - स्वराः Sanskrit Consonants - व्यंजनानि (३३) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ऌ, ए, ऐ, ओ, औ (१३)
अयोगवाह : अनुस्वार (अं) और विसर्गः( अः)
Dependent - ा, ि, ी, ु, ू, ृ, ॄ, े, ै, ो, ौ
Simple- अ, इ, उ, ऋ, ऌ
Dipthongs:- ए , ऐ , ओ , औ
ह्रस्वाः- अ , इ , उ , ऋ , ऌ ,
दीर्घाः- आ , ई , ऊ , ॠ , ए , ऐ , ओ , औ
स्पर्श खर मृदु अनुनासिकाः
Gutturals:कण्ठय क् ख् ग् घ् ं
Palatals:तालव्य च् छ् ज् झ् ं
Cerebrals:मूर्धन्य ट् ठ् ड् ढ् ण्
Dentals:दन्त्य त् थ् द् ध् न्
Labials:ओष्ठय प् फ् ब् भ् म्
श् ष् स य र ल् व
संयुक्त व्यंजन = त्र , क्ष , ज्ञ.
व्याख्या – सम्यक् कृतम् इति संस्कृतम्।
भाषा – संस्कृत और लिपि देवनागरी।
उच्चार स्थान ह्रस्व – दीर्घ – प्लुत – (स्वर) विचार
कण्ठः – (अ‚ क्‚ ख्‚ ग्‚ घ्‚ ं‚ ह्‚ : = विसर्गः )
तालुः – (इ‚ च्‚ छ्‚ ज्‚ झ्‚ ं‚ य्‚ श् )
मूर्धा – (ऋ‚ ट्‚ ठ्‚ ड्‚ ढ्‚ ण्‚ र्‚ ष्)
दन्तः (लृ‚ त्‚ थ्‚ द्‚ ध्‚ न्‚ ल्‚ स्)
ओष्ठः – (उ‚ प्‚ फ्‚ ब्‚ भ्‚ म्‚ उपध्मानीय प्‚ फ्)
नासिका – (ं‚ म्‚ ं ‚ण्‚ न्)
कण्ठतालुः – (ए‚ ऐ )
कण्ठोष्ठम् – (ओ‚ औ)
दन्तोष्ठम् – (व)
जिह्वामूलम् – (जिह्वामूलीय क् ख्)
नासिका – (ं = अनुस्वारः)
संस्कृत की अधिकतर सुप्रसिद्ध रचनाएँ पद्यमय है अर्थात् छंदबद्ध और गेय हैं। इस लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि इन रचनाओं को पढ़ते या बोलते वक्त किन अक्षरों या वर्णों पर ज़्यादा भार देना और किन पर कम। उच्चारण की इस न्यूनाधिकता को ‘मात्रा’ द्वारा दर्शाया जाता है।
* जिन वर्णों पर कम भार दिया जाता है, वे हृस्व कहलाते हैं, और उनकी मात्रा १ होती है। अ, इ, उ, लृ, और ऋ ये ह्रस्व स्वर हैं।
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नाम Nouns के तिन लिंग – पुंलिंग, स्त्रीलिंग, और नपुंसकलिंग तथा वचन- एकवचन, द्विवचन और बहुवचन साथ ही सात विभक्तियाँ भी होती है।
हर शब्द या नाम अपना एक रूप होता है यह रूप लिंग, वचन और विभक्ति के अनुसार बनता है। जैसे बालक शब्द का रूप बालकः ) पुलिंग एकवचन प्रथमा विभक्ति)
तद्धितपद = नाम को विशेष प्रत्यय बनता है इसका उपयोग कर्ता, विशेषण तथा अव्यय के जैसा होता है।
शब्द निमितम् वर्णविभाग न् का ण् होने या नहीं होने का कारण
करेण र क अ र् ए + न नकार के पूर्व यह रेफ् , षकार, ऋकार , अनुस्वार आनेपर नकार का णकार होगा
वृक्षाणां ऋ व् ऋ क्ष् आ + नाम्
चतुर्णाम् र् च् अ त् उ र् + नाम्
कृष्णः ष् क् ऋ ष् + नः
नृणाम् ऋ न् ऋ + नाम्
गर्वेण र ग र् व् ए + न
रविणा र र् अ व् इ + ना नकार का णकार होना निमित्त - स्वरवर्ण, कवर्ग, पवर्ग, ह, य, व, अनुस्वार .
इन्द्रेण र इ न् द् र् ए + न
हरीणाम् र ह् अ र् ई + नाम्
पुरुषेण र प् उ र् उ ष् ए + न
दीर्घेण र् द् ई र् घ् ए + न
प्रभुणा र प् र् अ भ् उ + ना
दुर्गमेण र् द् उ र् ग् अ म् ए + न
वदरीवणम् र व् अ द् अ र् ई व् अ + नम्
नरेशेन र न् अ र् ए श् ए + न
कर्णेन र् क् अ र् ण् ए + न
महाराजेन र म् अ ह् आ र् आ ज् ए + न नकार और र के बिचमे र् श, ण, ज, ल, च.आने के कारण न का ‘ण’ नहीं हुआ।
वार्तालापेन र् व् आ र् त् आ ल् आ प् ए + न
मारीचेन र म् आ र् ई च् ए + न
हलेन - ह् अ ल् ए न् अ
देवानां - द् ए व् आ न् आं
भोजनेन - भ् ओ ज् अ न् ए न् अ नकार के पूर्व रेफ् , षकार, ऋकार , अनुस्वार नहीं आया इसलिए नकार का णकार नहीं हुआ।
पाण्डवानाम् - प् आ ण् ड् अ व् आ न् आ म्
बालेन - ब् आ ल् ए न् अ
श्रेणी: व्याकरण:
Explanation:
Answer:
क) वृक्ष
ख) चित्रम
ग) I don't know this answer
घ) सन्त:
कृपा
च) प्रेम
छ) शक्ति:
ज) I don't know this answer