Hindi, asked by umag071, 6 hours ago

वर्तमान जीवन शैली और शहरीकरण से पक्षियों पर प्रभाव ( कंप्यूटर और विज्ञान विषय के साथ एकीकृत ) पर निबंध​

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Answered by sanjaysinghbisen1980
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Answer:

जंगल कम क्या हुए इंसान ही नहीं पक्षी भी सिमटने लगे। आधुनिकता की चकाचौंध में हम बंद कमरों में सिमट कर रह गए। लेकिन पेड़ पौधों के संरक्षण को भूल गए। हरियाली मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों को भी जीने की राह सिखाती है। लेकिन बढ़ती आबादी और शहरीकरण के विस्तार से पेड़ों की संख्या लगातार कम हो रही है। इससे गौरेया व तोता जैसे पक्षियों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है।

 

पर्यावरण प्रदूषण बना बड़ा कारण

 

सुबह कभी पक्षियों की चहचाहट से होती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे गौरेया जैसी प्रजाती लुप्त होने की कगार पर है। इसका बड़ा कारण ये है कि अब न पेड़ बचे हैं और न ही उनका कीटों से होने वाला भोजन। दुषित होती वातावरण की आबोहवा, प्रदुषित भोजन व गायब होते कीटों से पक्षियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पक्षियों की कमी तो सबने महसूस की होगी, लेकिन उनको बचाने बहुत कम लोग ही आगे आए हैं।

 

पक्षी प्रेमियों में रोष

पक्षी प्रेमियों का कहना है कि घटते जंगलों से पक्षियों का जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है। इससे उनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। पेड़ों की घटती संख्या से पक्षियों को घरोंदे बनाने के लिए जगह तक नसीब नहीं हो पा रही है। इसके चलते पक्षी अपने घोंसले कहीं बिजली के खंबो पर उलझे तारों में बना रहे हैं, तो कहीं रोड़ लाइटों पर।

 

 

शहरीकरण से सिमट रहा जीवन

 

अब बाग बगीचे उजाड़़कर बहुमंजिले अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं, तो कहीं खेतोंं में कॉलोनियां बसाई जा रही है। इससे पेड़ो की लगातार कटाई हो रही है। इससे जलवायु परिवर्तन का असर पक्षियों पर साफ दिख रहा है। पक्षी प्रेमियों का कहना है कि समय रहते गौरेया व तोता जैसे जीवों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उनका जीवन इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा।

 

ऐसे आई पक्षियों पर आफत

 

पेड़ों की घटती संख्या से भोजन के लिए संकट।

खेतों में कीट नाशक दवाओं का प्रयोग।

घरों में गौरेया के रहने के लिए कोई जगह नहीं।

आजकल महिलाएं न तो धान सुखाती है, ताकि कुछ खाने को मिल सके।

 

ये करें उपाय-

 

घड़ों पर छोटे-छोटे छेद कर घरोंदे बनाए।

पेड़ों पर परिधों के लिए परिंड़े बांधे।

परिड़ों को रोजाना साफ कर पानी भरें।

पक्षियों के लिए रोजाना चुगा ड़ाले।

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