Hindi, asked by PragyaShrivastava, 2 months ago

वर्तमान समय की समस्याओं पर 10 वाक्य लिखिए और समस्याओं को कैसे ठीक करना है भारत की वह 10 वाक्य लिखिए और भारत पर 10 पंक्तियों की कविता लिखी है अगर आपने सही आंसर दिया तो आपको मैं ब्रेंस माफ करूंगी​ tuition homework​

Answers

Answered by 18uk010080
0

Answer:

Explanation:

परिवर्तन चक्र तीव्र गति से घूम रहा है। सामाजिक स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है। ऐसे में मनुष्य एक विचित्र से झंझावात में फंसा हुआ है।  बाह्म रूप से चारों और भौतिक एवं आर्थिक प्रगति दिखाई देती है, सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का अंबार लगता जा रहा है, दिन-प्रतिदिन नए-नए अविष्कार हो रहे है, पर आंतरिक दृष्टि से  मनुष्य टुटता और विखरता जा रहा है। उसका संसार क प्रति विशवास, समाज के प्रति सद्भाव और जीवन के प्रति उल्लास धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। अब तो समाज में चारों और आपसी सौहादर्र समरसता एवं सात्विकता क स्थान पर कुटिलता, दुष्टता और स्वार्थपरता ही दृष्टिगोचर पाते है।

जो देश कभी जगत्गुरू हुआ करता था, उसी भारतवर्ष क राष्ट्रीय, सामाजिक,पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन में चतुर्दिक अराजकता और उच्छृंखलता छाई हुई  है। जीवन मूल्यों एवं आदर्शो के प्रति आस्था-निष्ठा की बात तो कोर्इ सोचता ही नहीं।

वैचारिक शुन्यता और दुष्प्रवृत्तियों​ के चक्रव्यूह में फंसा हुआ दिशाहीन मनुष्य पतन की राह पर फिसलता जा रहा है। उसे संभालने और उचित मार्गदर्शन देने वालों का भी आभाव ही दिखाई पड़ता है। कुछ गिने-चुने धार्मिक-आध्यात्मिक सगठन, सामाजिक संस्थाएँ और प्रतिष्ठान ही इस दिशा में सक्रिय है अन्यथा अधिकांश तो निजी स्वार्थ एवं व्यवसायिक दृष्टिकोण से ही कार्यरत लगते है। ईमानदारी , मेहनत और सत्यनिष्ठा के साथ नि:स्वार्थ भाव से स्वेच्छापूर्वक जनहित के कार्य करने वालों को लोग मुर्ख ही समझते है। उनके परिश्रम एवं भोलेपन का लाभ उठाकर वाहवाही लूटने वाले समाज के ठेकेदार सर्वत्र दिखाई देते है। समाज सेवा का क्षेत्र हो या धर्म-अध्यात्म अथवा राजनिति का, चारों और अवसरवादी,सत्तालोलुप , आसुरी प्रवृति के लोग ही दिखाई देते हैं। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र, में जहाँ कभी सेवा के उच्चतम आदर्शो का पालन होता था, आज व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र बन गए है। व्यापार में तो सर्वत्र कालाबाजारी, चोरबाजारी,बेईमानी मिलावट, टैक्सचोरी आदि ही सफलता के मूलमंत्र समझे जाते है। त्याग,बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी , श्रमशीलता का सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है। सामान्य नागरिक से लेकर सत्ता के शिखर तक अधिकांश व्यक्ति अनीति-अनाचार में आकंठ डूबे हुए है। प्रत्येक के मन में निजी स्वार्थ व महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ ईर्ष्या , घृणा, बैर की भावनाएँ जड़ जमाए हुए है। ऐसी विकृत मानसिकता क चलते मनुष्य वैज्ञानिक प्रगति से प्राप्त सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का दुरूपयोग ही करता रहाता है। फलत: उसका शरीर अंदर से खोखला होकर अनेकानेक रोगों का घर बनता जा रहा है। मनुष्य की इच्छाओं व कामनाओं की कोई  सीमा नहीं है, धैर्य व संयम की मर्यादाएं टुट रही है, अहंकार व स्वार्थ का नशा हर समय सिर पर सवार रहता है। ऐसी स्थिति में क्या सामाजिक समरसता व सहयोग की भावना जीवित रह सकती है? सुख, शांति व आंनद के दर्शन हो सकते है? जहाँ चारों और धनबल और बाहुबल का नंगा नाच हो रहा हो, घपलों-घोटालों का बोलबाला हो, वह समाज क्या कभी वास्तविक प्रगति कर सकता है? मानव के इस पतन-पराभव का कारण खोजने का यदि हम सच्चे मन से प्रयास करें ता पता चलेगा कि सारी समस्याओं की जड़ पैसा है। सारा संसार ही अर्थ प्रधान हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति हर समय अधिक से अधिक धन कमाने की उधेड़बुन में लगा रहता है। इसके लिए अनीति, अनाचार, भ्रष्टाचार जैसे सभी साधनों का खुलेआम प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कमाए हुए धन के कारण ही समाज में मूल्यविहीन भोगवादी संस्कृति का अंधानुकरण और विलासिता का अमर्यादित आचरण सर्वत्र देखा जा सकता है। यह सब जानते समझते हुए भी आदमी पैसे के पीछे पागल हो रहा है।

युवा वर्ग पर इसका प्रभाव-

आज का युवा वर्ग ऐसे ही दुषित माहौल में जन्म लेता है और होश संभालते ही इस प्रकार की दुखद एवं चितांजनक परिस्थितियों से रूबरू होता है। आदर्शहीन समाज से उसे उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं मिलता और दिशाहीन शिक्षा पद्धति उसे और अधिक भ्रमित करती रहती है। ऐसे दिगभ्रमित और वैचारिक शून्यता से ग्रस्त युवाओं पर पाश्चात्य अपसंस्कृति का आक्रमण कितनी सरलता से होता है, इसे हम प्रत्यक्ष देख ही रहे है। भोगवादी आधुनिकता क भटकाव में फंसी युवा पीढ़ी दुष्प्रवृतियों के दलदल में धंसती जा रही है। विश्विद्यालय और शिक्षणसंस्थान जो युवाओं की निर्माणस्थली हुआ करते थे आज अराजकता एवं उच्खर्लाता के केंद्र बन गए है। वहाँ मूल्यों एवं आदर्शो के प्रति कहीं कोई निष्ठा दिखाई ही नहीं देती। सर्वत्र नकारात्मक एवं विध्वंसक गतिविधियाँ ही सक्रिय रहती है। ऐसे शिक्षक व विद्याथ्री जिनमें कुछ सकारात्मक और रचनात्मक कार्य करने की तड़पन हो, बिरले ही मिलते है। इसी का परिणाम है कि हमारा राष्ट्रीय एवं सामाजिक भविष्य अंधकारमय लग रहा है।

Answered by shrutikewat08
0

Answer:

in which standard pls answer me ..

Similar questions