Hindi, asked by gmsannu123, 1 year ago

वर्तमान शिक्षा पदती की कामिया पर अनुछेद

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Answered by shivishing
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आज पढ़ने-लिखने का मतलब कुर्सी पर बैठ कर हुक्‍म चलाना हो गया है. पढ़े-लिखे लोगों को काम करने में लज्जा का अनुभव होता है. इसलिए समाज की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. बुद्धि और हाथ का उपयोग सम्यक रूप से नहीं हो पा रहा है. इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज ज्ञान और कर्म के बीच मेलजोल खतम हो गया है. काम करने वाले के पास ज्ञान नही पहुँचता और ज्ञानी काम करना नहीं चाहता है. जो लोग पढ़ार्इ करते हैं, वे ठंड, गर्मी, तथा बरसात की मार नहीं झेल सकते हैं. जरा सा कुछ करना पड़ जाए तो बीमार हो जाते हैं या थक जाते हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि आज के शिक्षित लोग गूढ़ अनुभव को समझ नही पाते हैं.
ऊपरी तौर पर देखने पर लगता है कि आजकल चारो ओर शिक्षा का विस्फोट हो रहा है. सभी पढ़-लिख कर नौकरी चाहते हैं, जिसके कारण सरकार के सामने भी विकट समस्या खड़ी हो गर्इ है. आजकल विद्यार्थी, विद्यार्थी न रहे, परीक्षार्थी हो गये हैं. वे साम-दाम-दंड-भेद अपना कर किसी तरह अधिक से अधिक अंक प्राप्त करना चाहते हैं. जिसके कारण वे सच्चा ज्ञान प्राप्त करने से वंचित हो जाते हैं. आजकल हम ज्ञान के बजाय जानकारी बटोर रहे हैं, जिसके कारण भी समस्या उत्पन्न होती जा रही है. शिक्षा देने के नाम पर हम यही जानकारी बॉंटते हैं, यही एक समस्या का एक कारण है. आज इतनी बेकार तालीम दी जा रही है कि विद्यार्थी बगावती होता जा रहा है. इस कारण वह शस्त्र उठाने लगा है. इसी कारण समाज में हिंसा का बोलबाला हो रहा है. ज्ञान न होने के कारण जो जानकारी उसे मिली है, वह चर्चा करने के लिए तो ठीक है, किन्तु रोटी नहीं दे पाती, जिसके कारण बहुत से युवा घोर अवसाद के शिकार होते जा रहे हैं, कभी-कभी अवसाद इतना बढ़ जाता है कि वे आत्महत्या तक कर लेते हैं. आजकल देखने पर तो ऐसा लगता है कि हर युवा किसी न किसी रूप में अवसाद से पीड़ित है.
आज की तालीम सुविधायुक्‍त जीवन के लिए दी जा रही है. शिक्षा देने-लेने की प्रक्रिया में भी सख का ध्यान रखा जाता है. वे संस्थाये सबससे अधिक चलती है, जिनके पास सबसे अधिक सुविधाये होती हैं. इनके मॉं-बाप भी उनसे शारीरिक परिश्रम का काम नहीं लेते हैं जिसके कारण वे शारीरिक रूप से सबल नहीं हो पाते हैा. कोर्इ काम करना पड़ जाए, तो बहुत जल्दी ही उनका दम भर जाता है. वे बहुत जल्दी थक जाते हैं. हमारे देश प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि आराम हराम है. किन्तु आज हम उसी हराम चीज के पीछ भागते दिखार्इ दे रहे हैं, हमारे समाज में वह सबसे बड़ा आदमी गिना जाता है, जो सबसे ज्यादा आराम करता है. इसी कारण एक दो पुश्त के बाद ही उस परिवार की माली हालत खस्ता हो जाती है.
शिक्षा जीवन जीने की कला है. किन्तु हम कला के नाम पर कुछ नहीं सीखते हैं. जो लोग पढ़ार्इ न सीख कर कोर्इ हुनर सीख लेते हैं, वे हर मामले में काफी आगे देखे जाते हैं.

shivishing: plz mark me as brainlest.
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