वर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमक घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की।।
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संदर्भ- प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'कवितावली 'से लिया गया है ।
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बालक राम की मनोहारी छवि का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है ।
व्याख्या- बालक राम की हंसने पर दिखने वाली उनके दातों की श्रेष्ठ पंक्ति कुंद की कली के समान अत्यंत सुंदर है । उनके बोलने पर ऊपर- नीचे के दोनों होंठ कोमल लाल-लाल पत्तों की तरह खुलते हैं । उनके श्याम वर्ण वृक्ष पर पड़ी हुई मोतियों की माला जब चमकती है ,तो ऐसा लगता है मानो काले, घने बादलों के मध्य बिजली चमक रही हो ।
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