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प्राचीन काल से ही मानव और प्रकृति का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । भोजन, वस्त्र और आवास की समस्याओं का समाधान भी इन्हीं वनों से हुआ है । वृक्षों से उसने मीठे फल, वृक्षों की छाल प्राप्त की और पत्तों से उसने अपना शरीर ढका ।
उनकी लकड़ियों और पत्तियों से अपने घर की छत बनाई । प्राचीन काल का साहित्य भी हमें ताड़-पत्रों पर सुरक्षित मिलता है । प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ उपहार वन है । वनों की हरियाली के बिना मानव जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है । जन्म से लेकर मृत्यु तक इन वनों की लकड़ी ही उसके काम आती है ।
बचपन में लकड़ी के पालने में झूलना, बुढ़ापे में उसका सहारा लेकर चलना और जीवन लीला की समाप्ति पर इन्हीं लकड़ियों पर सोना मनुष्य की अन्तिम गति है । इन वृक्षों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है । घने वनों की हरियाली देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
वृक्ष स्वयं धूप में रहकर हमें छाया देते हैं । जब तक हरे-भरे रहते हैं तब तक हमें फल, सब्जियां देते हैं और सूखने पर ईंधन के लिए लकड़ी देते हैं । इन्हीं वृक्षों की हरी पत्तियों और फलों को खाकर गाय, भैंस, बकरी आदि जानवर दूध देते हैं जिसमें हमें प्रोटीन मिलता है ।
इन्हीं वनों से पृथ्वी को बंजर होने से बचाया जाता है । वन भू-क्षरण और पवन स्खलन को रोकते हैं । अपनी हरियाली से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और देश की प्रगति में आर्थिक सहयोग देते हैं । फूलों से मधुमक्खियां मकरंद लेकर शहद बनाती हैं जिससे आयुर्वेदिक दवाइयां बनती हैं और वह खाने में उपयोगी होता है ।
वनों की लकड़ी से हम कागज, लाख, गोंद, खिलौने, प्लाईवुड, सौन्दर्य सज्जा का सामान, खिड़कियां, पलंग, दरवाजे आदि वनाते है । रबड़, कत्था, बीड़ी का पत्ता भी इन्हीं वनों से मिलता है । भारत में न केवल देवी-देवताओं की अपितु वृक्षों की भी पूजा होती है । जैसे-पीपल, वट, तुलसी, केला आदि । इन वृक्षों में देवताओं का निवास माना जाता है । इसलिए इन्हें काटना पाप समझा जाता है ।
वृक्ष चिकित्सा के लिए भी उपयोग में लाये जाते हैं । जैसे-नींबू, नीम, तुलसी, आंवला आदि । इनके छाल और पत्तों से अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी दवाइयां बनती हैं और इनके सेवन से शारीरिक रोग नष्ट होते हैं । प्राचीन भारतीय साहित्य भी वृक्षारोपण के अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है ।
जैसे-अभिज्ञानशाकुन्तलम में कालिदास की नायिका शाकुन्तला वृक्षों का रोपण करती थी और मृगार प्रिय होने पर भी उन पुष्पों को नहीं तोड़ती थी । अनेक दयालु राजाओं ने भी सड़कों के दोनों किनारे पर छायादार और फलादार वृक्ष लगवाए थे ।
वृक्षों के फैलाव के सिमटने का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है । उनके रहने के लिए मकान, खेलने के लिए पार्क और मनोरंजन के लिए सिनेमाघर चाहिए । उनकी इन मांगों को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है । अब हमें वनों में नंगापन और भवनों में दस मंजिल ऊँची इमारतें नजर आती हैं ।
शहरों में कारखानों और यातायात के धुओं से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है । वर्षा का समय पर न होना या अतिवृष्टि होना, आदि भी वनों के अभाव के कारण होते हैं । चोरी छिपे वन में लगे पेड़ों को काटने से, वन्य पशुओं जैसे- शेर, चीता, बाघ, हाथी, नील गाय, हिरण आदि के घरों को हम बर्बाद कर डालते हैं ।
देश को हरा-भरा बनाए रखने के लिए स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है । प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में एक वृक्ष अवश्य लगाए । आज का स्वार्थी मानव पेड़ तो काटता गया लेकिन पेड़ लगाना भूल गया जिससे यह समस्या आज इतनी उग्र हो गई ।
बिना परमाणु युद्ध की लड़ाई लड़े ही अपनी कब्र अपने हाथों से खोद ली और अपने द्वारा रचे गए वातावरण में वह स्वयं आज पल रहा है । वन पृथ्वी की अमूल्य धरोहर है । वह मूल से लेकर शिखा तक हमारे लिए है । उनकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है । अपने और आने वाली पीढ़ी के जीवन को बचाने के लिए हमें वृक्षारोपण करना ही होगा ।
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उनकी लकड़ियों और पत्तियों से अपने घर की छत बनाई । प्राचीन काल का साहित्य भी हमें ताड़-पत्रों पर सुरक्षित मिलता है । प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ उपहार वन है । वनों की हरियाली के बिना मानव जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है । जन्म से लेकर मृत्यु तक इन वनों की लकड़ी ही उसके काम आती है ।
बचपन में लकड़ी के पालने में झूलना, बुढ़ापे में उसका सहारा लेकर चलना और जीवन लीला की समाप्ति पर इन्हीं लकड़ियों पर सोना मनुष्य की अन्तिम गति है । इन वृक्षों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है । घने वनों की हरियाली देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
वृक्ष स्वयं धूप में रहकर हमें छाया देते हैं । जब तक हरे-भरे रहते हैं तब तक हमें फल, सब्जियां देते हैं और सूखने पर ईंधन के लिए लकड़ी देते हैं । इन्हीं वृक्षों की हरी पत्तियों और फलों को खाकर गाय, भैंस, बकरी आदि जानवर दूध देते हैं जिसमें हमें प्रोटीन मिलता है ।
इन्हीं वनों से पृथ्वी को बंजर होने से बचाया जाता है । वन भू-क्षरण और पवन स्खलन को रोकते हैं । अपनी हरियाली से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और देश की प्रगति में आर्थिक सहयोग देते हैं । फूलों से मधुमक्खियां मकरंद लेकर शहद बनाती हैं जिससे आयुर्वेदिक दवाइयां बनती हैं और वह खाने में उपयोगी होता है ।
वनों की लकड़ी से हम कागज, लाख, गोंद, खिलौने, प्लाईवुड, सौन्दर्य सज्जा का सामान, खिड़कियां, पलंग, दरवाजे आदि वनाते है । रबड़, कत्था, बीड़ी का पत्ता भी इन्हीं वनों से मिलता है । भारत में न केवल देवी-देवताओं की अपितु वृक्षों की भी पूजा होती है । जैसे-पीपल, वट, तुलसी, केला आदि । इन वृक्षों में देवताओं का निवास माना जाता है । इसलिए इन्हें काटना पाप समझा जाता है ।
वृक्ष चिकित्सा के लिए भी उपयोग में लाये जाते हैं । जैसे-नींबू, नीम, तुलसी, आंवला आदि । इनके छाल और पत्तों से अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी दवाइयां बनती हैं और इनके सेवन से शारीरिक रोग नष्ट होते हैं । प्राचीन भारतीय साहित्य भी वृक्षारोपण के अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है ।
जैसे-अभिज्ञानशाकुन्तलम में कालिदास की नायिका शाकुन्तला वृक्षों का रोपण करती थी और मृगार प्रिय होने पर भी उन पुष्पों को नहीं तोड़ती थी । अनेक दयालु राजाओं ने भी सड़कों के दोनों किनारे पर छायादार और फलादार वृक्ष लगवाए थे ।
वृक्षों के फैलाव के सिमटने का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है । उनके रहने के लिए मकान, खेलने के लिए पार्क और मनोरंजन के लिए सिनेमाघर चाहिए । उनकी इन मांगों को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है । अब हमें वनों में नंगापन और भवनों में दस मंजिल ऊँची इमारतें नजर आती हैं ।
शहरों में कारखानों और यातायात के धुओं से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है । वर्षा का समय पर न होना या अतिवृष्टि होना, आदि भी वनों के अभाव के कारण होते हैं । चोरी छिपे वन में लगे पेड़ों को काटने से, वन्य पशुओं जैसे- शेर, चीता, बाघ, हाथी, नील गाय, हिरण आदि के घरों को हम बर्बाद कर डालते हैं ।
देश को हरा-भरा बनाए रखने के लिए स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है । प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में एक वृक्ष अवश्य लगाए । आज का स्वार्थी मानव पेड़ तो काटता गया लेकिन पेड़ लगाना भूल गया जिससे यह समस्या आज इतनी उग्र हो गई ।
बिना परमाणु युद्ध की लड़ाई लड़े ही अपनी कब्र अपने हाथों से खोद ली और अपने द्वारा रचे गए वातावरण में वह स्वयं आज पल रहा है । वन पृथ्वी की अमूल्य धरोहर है । वह मूल से लेकर शिखा तक हमारे लिए है । उनकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है । अपने और आने वाली पीढ़ी के जीवन को बचाने के लिए हमें वृक्षारोपण करना ही होगा ।
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