Hindi, asked by rekhasharma97489, 7 months ago

VARSHA KI VIDAI poem by Makhanlal Chaturvedi bbhavart​

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Answered by Apotropaic
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आपका उत्तर :-

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वर्षा की विदाई : माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित कविता

पंक्तियां - वर्षा ने आज विदाई ली जाडे ने कुछ अंगड़ाई ली

प्रकृति ने पावस बूंदों से रक्षण की नव भरपाई ली

भावार्थ - कवि कहते हैं कि वर्षा ने विदाई ले ली है अर्थात वर्षा का मौसम चला गया है। वे कहते हैं कि वर्षा के जाने से जाड़े ने अंगड़ाई ली है अर्थात शीत ऋतु का मौसम आ गया है। प्रकृति ने पावस की बूंदों अथवा वर्षा की बूंदों से जाड़े के मौसम की जिम्मेदारी ले ली है। गाड़ी का मौसम वर्षा की बूंदों की भरपाई करके मौसम को निर्मलता व नवीनता का उपहार देगा। कहने का तात्पर्य है कि वर्षा ऋतु जब आती है तो संपूर्ण प्रकृति को ठंडक देती है और इसके पश्चात जाड़े के मौसम का आगमन होता है।

पंक्तियां- सूरज के पथ से काले-काले आवरण हटे

डूबे टीले महकन उठ्ठी दिनों की रात के चरण हटे

भावार्थ- कवि कहते हैं कि बारिश के जाने से सूरज के पद से बादलों के काले काले आवरण हट गए हैं जैसे सूरज की किरणें धरती को पूरी तरह से प्रकाशित कर रही हैं। बरसात में जो टीले डूबे हुए थे अब जाड़े के मौसम के आने से सूर्य की रोशनी उन पर पड़ने से उन पर जमा हुआ पानी सूख गया है और मिट्टी की सुगंध आने लगी है। वर्षा ऋतु में बादलों के कारण जो दिन में ही रात सा अंधकार प्रतीत होता था उन रातों के चरण अब हट चुके हैं। बादलों की कालिमा हट गई है और सूरज की रोशनी से पूरा जग चमक रहा है।

पंक्तियां- पहले उदार थी गगन वृष्टि अब तो उदार हो उठे खेत

यह ऊग ऊग आई बहार वह लहराने लग गई रेत

★भावार्थ- इन पंक्तियों में कभी कहते हैं कि वर्षा ऋतु में आकाश बड़ी उदारता दिखा रहा था अर्थात बारिश थमने का नाम ही नहीं लेती थी परंतु जाड़े के आगमन से धरती के अब खेत उदार हो उठे हैं। जाड़े की आगमन ही चारों तरफ खेत में फसलें उग आई हैं और खेतों में बहुत दिनों से गीली मिट्टी अब सूख जाने के कारण हवा के साथ उड़ने लगी है जो अत्यंत खुशी के साथ लहराती हुई लगती है।

★पंक्तियां- ऊपर से नीचे गिरने के दिन रात गए छवियां छायी

नीचे से ऊपर उठने की हरियाली पुन: लौट आई

★भावार्थ- कवि कहते हैं कि वर्षा बहुत दिनों तक रही जिसके वजह से आकाश के नीचे चारों और हरियाली छाई हुई है। हरे-हरे, नन्हे- नन्हे पौधे इस तरह बढ़ने लगे हैं कि समस्त धरती पर मानो फिर से हरियाली लौटाई हो।

★पंक्तियां- अब पुनः बांसुरी बजा उठे ब्रज के यमुना वाले कछार

धुल गए किनारे नदियों के धुल गए गगन में घन अपार

★भावार्थ- कभी कहते हैं कि वर्षा का मौसम जाने से ब्रजभूमि के पास यमुना नदी के किनारे अब इतने पैसे ना दिखाई पड़ रहे हैं मानव बांसुरी बजा रहे हो। अच्छा जिस तरह गोपाल यमुना नदी के किनारे बांसुरी बजा रहे हो ऐसा मालूम पड़ता है। वर्षा के जाने से नदियों के किनारे भी धुल गए हैं।

★पंक्तियां- अब सहज हो गए गति के वृत जाना नदियों के आर पार

अब खेतों के घर अन्नौं की बंदनवारे है द्वार द्वार

★भावार्थ- कवि कहते है कि तुम्हें पानी के बहाव के साथ नदियों में जो खर-पथवार , पेड़ पौधे इस पार से उस पार तक सतैरते थे ,वे अब एक स्थान पर सहज हो गए हैं। अब खेतों के घर उनके द्वार द्वार पर बंदनवारों किधर है यानी फसलों से सज गए हैं।

★पंक्तियां- नालो नादियों सागरों सरों ने नभ से नीलांबर पाए

खेतों की मिटी कालिमा उठ वे हरे हरे हो सब आए

★भावार्थ- कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु के जाने से नालों, नदियों ,सागरों व तालाबों ने ऐसा लगता है मानव नभ से नीलांबर यानी नीला आकाश पाया अर्थात नीले आकाश के समान जल पाया। वर्षा के कारण अब तक आकाश में काले काले में छाए हुए थे गए हैं, आकाश नीला दिखाई देने लगा है। काश में चारों ओर बादल घिरे रहते थे तो उनकी परछाई से खेतों में भी कालिमा दिखाई देती थी। अब उन बादलों के हट जाने से धरती का असली सौंदर्य दिखाई पड़ता है।

★पंक्तियां- मलयानिल खेल रही छवि से पंखिनियो ने कल गान किए

कलियां उठ आई वृन्तों पर फूलों को नव मेहमान किए

★भावार्थ- कभी कहते हैं कि वर्षा के जाने से धरती पर चारों तरफ हरियाली बिखरी है उसकी शोभा देखते बन रही है। की हरियाली की छवि पर से जब शीतल हवाएं आती है तो वे ऐसा आभास देती है कि मानो वे साधारण हवाएं ना होकर मलयानिल हो। जाने से पंख दारी पक्षी चारों ओर चहक रहे हैं। की डालियों पर कलियां अब फूलों के रूप में नए मेहमान की तरह खिल उठी हैं।

★पंक्तियां- घिरने गिरने के तरल रहस्यों का सहसा अवसान हुआ

दाएं बाएं से उठी पवन उठते पौधों का मान हुआ

★भावार्थ- कवि कहते हैं की वर्षा के जाने से मानो फिर से आकाश में बादलों की घिरने की और आसमान की बारिश के रूप में पानी गिरने के तरल रहस्य अचानक समाप्त हो गए हैं‌।अब धरती पर नन्हे नन्हे पौधे बढ़ रहे हैं और दाएं से बाएं हवा उन्हें दिला दे रही है ऐसा लग रहा है कि पौधों की वजह से धरती का श्रृंगार बढ़ गया है।

★पंक्तियां- आने लगी धरा पर भी मौसमी हवा छवि प्यारी की

यादों में लौट रही निधियां मनमोहन कुंजबिहारी की

★भावार्थ- कवि कहते हैं कि जाड़े के आगमन से धरती पर मौसमी हवा भी बहने लगी है जो राधा के समान सौंदर्य पूर्ण हैं। टीका सौंदर्य देखकर कवि की यादों में निधियों यानी धन-संपत्ति की भांति मन को मोहने वाले मनमोहन (श्री कृष्ण) ,वृंदावन की कुंज लताओं में अक्सर राधा के साथ दिखाई देने वाले कुंज बिहारी की याद आ रही है। कहने का बाप यह है कि वर्षा के जाने और जाड़े के आने से धरती पर चारों तरफ वातावरण इतना सुहावना हो गया है कि कभी को राधा कृष्ण का प्रेम और वृंदावन का मनमोहक सौंदर्य याद आ रहा है।

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Answered by sumaiyakhan998800
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Explanation:

(ख) नीचे दो काव्यांश दिए गए हैं। किसी एक काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली, प्रकृति ने पावस बूँदों से रक्षण की नव भरपाई ली। [1]

सूरज की किरणों के पथ से काले-काले आवरण हटे, डूबे टीले महकन उड्डी दिन की रातों के चरण हटे। । [2]

पहले उदार थी गगन वृष्टि अब तो उदार हो उठे खेत, यह ऊग-ऊग आई बहार वह लहराने लग गई रेत। [3]

ऊपर से नीचे गिरने के दिन-रात गए छवियाँ छाई, नीचे से ऊपर उठने की हरियाली पुनः लौट आई। [4]

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