vartman shiksha pranali par nibandh in hindi
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प्राचीन काल में शिक्षा का बहुत महत्व था। सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा का उदय सबसे पहले भारत में हुआ था। प्राचीनकाल में शिक्षा का स्थान नगरों और शोरगुल से बहुत दूर वनों के गुरुकुल में होता था। इन गुरुकुलों का संचालन ऋषि-मुनि करते थे। प्राचीन काल में विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और अपने गुरु के चरणों में बैठकर ही पूरी शिक्षा प्राप्त करते थे।
कुछ इसी तरह के विद्यालय तक्ष शिला और नालंदा थे। यहाँ पर विदेशी भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। फिर मध्ययुग आया तब भारत को लंबे समय तक परतंत्रता भोगनी पड़ी थी। मुसलमानों के युग में अरबी-फारसी शिक्षा का प्रसार हुआ। जब 18 वीं और 19 वीं शताब्दी आई तो शिक्षा को केवल अमीर और सामंत ही ग्रहण कर सकते थे। स्त्री शिक्षा तो लगभग खत्म ही हो गई थी।
नवीन शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता : हमारा भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ था। हमारे कर्णधारों का ध्यान नई शिक्षा प्रणाली की तरफ गया क्योंकि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली हमारी शिक्षा प्रणाली के अनुकूल नहीं थी। गाँधी जी ने शिक्षा के विषय में कहा था कि शिक्षा का अर्थ बच्चों में सारी शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का विकास करना होता है। शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए अनेक समितियां बनाई गयीं।
कमेटी द्वारा एक विशाल योजना बनाई गई जो तीन साल के भीतर 50 % शिक्षा का प्रसार कर सके। सैकेंडरी शिक्षा का निर्माण किया गया। विश्वविद्यालय से ही समस्या को सुलझाने के प्रयास किये गये। बाद में बेसिक शिक्षा समिति बनाई गई जिसका उद्देश्य भारत में बेसिक शिक्षा का प्रसार करना था। अखिल भारतीय शिक्षा समिति की सिफारिस की वजह से बच्चों में बेसिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया था।
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kaise kare mark humko nahi karna aata mark