वसंत आया' कविता में कवि की चिंता क्या है?
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वसंत आया कविता में कवि की मूल चिंता प्रकृति के विनाश के बारे में है। मनुष्य विकास के नाम पर प्रकृति को निरंतर नुकसान पहुंचाया है अब तो प्रकृति के प्राकृतिक स्वरूप की बातें सपने जैसी लगती हैं। बड़े-बड़े शहरों में तो प्रकृति का प्राकृतिक रूप देखने को ही नहीं मिलता। पेड़ पौधे की हरियाली सपना जैसी हो गयी हैं। चारों तरफ कंक्रीट का जंगल सा बिछा हुआ है।
इमारतों का साम्राज्य फैला हुआ है। ऋतु में जो निरंतर बदलाव हो रहा है और मौसम की अनियमितता से मनुष्य सचेत नहीं हो रहा। कवि की चिंता यह है कि मनुष्य प्रकृति से दूर हो चला है और बनावटी जीवन-शैली जीने में लगा है। उसके पास आधुनिक साधन है लेकिन प्रकृति नहीं है। उसने प्रकृति के सौंदर्य को देखने की और उसे महसूस करने की संवेदना नहीं रह गई है। वो प्रकृति आनंद महसूस नहीं कर पाता।
कोई त्यौहार आने पर ही से पता चलता है कि यह त्योहार किस ऋतु के कारण है। पहले के समय में नई-नई ऋतुओं के आने पर उसका स्वागत लोग हर्षोल्लास से करते थे अब मनुष्य वैसा आनंद महसूस नहीं करता। कवि चिंतित है कि प्रकृति अब आधुनिकता की भेंट चढ़ चुकी है। आने वाला समय और भयानक है।