वसंत ऋतु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएंँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए?
Answers
बसंत ऋतु पर दो कवितायें...
आया वसंत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल
पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेकर सुगंध बह रहा पवन
हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आँगन
है आज मधुर सब दिग दिगंत
आया वसंत आया वसंत।
भौरे गाते हैं नया गान,
कोकिला छेड़ती कुहू तान
हैं सब जीवों के सुखी प्राण,
इस सुख का हो अब नही अंत
घर-घर में छाये नित वसंत।
▬ सोहनलाल द्विवेदी
मलयज का झोंका बुला गया
खेलते से स्पर्श से
रोम रोम को कंपा गया
जागो जागो
जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली
सिरिस ने रेशम से वेणी बाँध ली
नीम के भी बौर में मिठास देख
हँस उठी है कचनार की कली
टेसुओं की आरती सजा के
बन गयी वधू वनस्थली
स्नेह भरे बादलों से
व्योम छा गया
जागो जागो
जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
चेत उठी ढीली देह में लहू की धार
बेंध गयी मानस को दूर की पुकार
गूंज उठा दिग दिगन्त
चीन्ह के दुरन्त वह स्वर बार
"सुनो सखि! सुनो बन्धु!
प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार!"
आज मधुदूत निज
गीत गा गया
जागो जागो
जागो सखि वसन्त आ गया, जागो!
▬ अज्ञेय
स्पष्टीकरण : यहाँ पर दो कवियों की कवितायें दी गईं हैं। ऊपर प्रश्न में किसी कवि की कविता के इन दो कविताओं का का मिलान करने को कहा गया है, लेकिन कवि की कविता नही दी है। शायद रघुवीर सहाय द्वारा लिखित ‘बसंत आया’ कविता से मिलान करने को कहा गया है।
इन दोनों कविताओं और ‘बसंत आया’ कविता में ये अंतर है कि इन दोनो कविताओं में बसंत ऋतु का मनमोहक वर्णन किया गया है। लेकिन ‘बसंत आया’ में ऐसा कोई वर्णन नही मिलता। इन दोनो कविताओं में बसंत ऋतु के माध्यम से प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है, पौधे, फूल, पत्तियों का वर्णन है, लेकिन बसंत आया कविता में बसंत ऋतु के सौंदर्य का कोई प्रत्यक्ष वर्णन नही है।
‘वसंत आया’ कविता...
जैसे बहन 'दा' कहती है
ऐसे किसी बँगले के किसी तरु( अशोक?) पर कोइ चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराये पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराये पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहायी हो-
खिली हुई हवा आयी फिरकी-सी आयी, चली गयी।
ऐसे, फ़ुटपाथ पर चलते-चलते-चलते
कल मैंने जाना कि बसन्त आया।
और यह कैलेण्डर से मालूम था
अमुक दिन वार मदनमहीने कि होवेगी पंचमी
दफ़्तर में छुट्टी थी- यह था प्रमाण
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गन्ध से लदे-फँदे दूर के विदेश के
वे नन्दनवन होंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नग्ण्य दिन जानूंगा
जैसे मैने जाना, कि बसन्त आया।
Answer:
कवि को कविताएँ पढ़ते रहने से किस बात का पता नहीं था? *
1 point
कि दहर दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
कि रंग रस गन्ध से लदे फँदे दूर के विदेश के वे नन्दन वन होवेंगे यशस्वी
कि मशीनें बताएंगी ऋतु परिवर्तन के चक्र को
कि मधुमस्त पिक भौर आदि अपना अपना कृत्तित्व अभ्यास करके दिखावेंगे