Veer ras ke examples
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वीर रस हिन्दी भाषा में रस का एक प्रकार है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है।
उदाहरण
वीर तुम बढे चलो, धीर तुम बढे चलो। सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड हो। तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नही।
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वीर रस के उदाहरण:-
1)सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
2)मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे
है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं।
3)साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।।
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