videshon mein bhartiya kala ka prabhav kis roop mein prakat Hota hai
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कला, संस्कृति की वाहिका है। भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य हमें स्थूल से चेतन सत्ता तक एकरूप कर देता है। मानवीय संबन्धों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को कला उजागार करती है। अस्तु चेतना का मूल ‘रस’ है। वही आस्वाद्य एवं आनन्द है, जिसे कला उद्घाटित करती है। भारतीय कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्वण बनाकर रखती है। भारतीय कला को जानने के लिये उपवेद, शास्त्र, पुराण और पुरातत्त्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पड़ता है। कला का मानक कला स्वरूप अपने आप में निहित हैं।
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विदेशी संस्कृति पर भारतीय कला का प्रभाव अनेक रूपों में दिखाई देता है। जावा तथा बाली के नृत्य भारत से ही लिए गए हैं। ... इसके अलावा भारतीय वास्तुकला का प्रभाव भी अंगको और बोरोबुदुर की इमारतों पर दिखाई देता है। भारतीय संगीत ने चीन और सुदूरपूर्व के अलावा एशियाई संगीत को प्रभावित किया है।