vidhayrthi jivan mein guru ka mahayata ka nishkarsh thora zyada line mein
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गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
अर्थ : गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं । गुरूदेव ही शिव हैं तथा गुरूदेव ही साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं । मैं उन्हीं गुरूदेव के नमस्कार करता हू|
गुरु का महत्व उनके शिष्यों को भली भाँती पता होता है। अगर गुरु नहीं तो शिष्य भी नहीं, अर्थात गुरु के बिना शिष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्राचीन काल से गुरु और उनका आशीर्वाद, भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग है।
प्राचीन समय में गुरु अपनी शिक्षा गुरुकुल में दिया करते थे। गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात शिष्य उनके पैर स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु का स्थान माता – पिता से अधिक होता है। गुरु के बैगर शिष्यों का वजूद नहीं होता है।
जिन्दगी के सही मार्ग का दर्शन छात्रों को उनके गुरु जी करवाते है। जीवन में छात्र सही गलत का फर्क गुरूजी के शिक्षा के बिना नहीं कर सकते है। शिष्यों के जिन्दगी में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है। गुरू जो भी फैसला लेते है उनके शिष्य उनका अनुकरण करते है। गुरु शिष्यों के मार्ग दर्शक है और शिष्यों की जिन्दगी में अहम भूमिका निभाते है।
गुरु की इज़्ज़त करना है शिष्यों का परम धर्म
गुरु का सम्मान शिष्यों को सदैव करना चाहिए। समाज में कुछ बुरे मंशा वाले लोग रहते है, वह अपने गुरु का सम्मान और आदर नहीं करते है। ऐसे लोग अपने जीवन में कभी भी उन्नति नहीं कर पाते है। गुरु का अपमान यानी शिक्षा का अपमान करना होता है। इसलिए बच्चो को बचपन से ही गुरु की इज़्ज़त करना बड़े लोग यानी माता -पिता सीखाते है।
प्राचीन काल में आश्रम और गुरु का महत्व
प्राचीन काल में पाठशाला नहीं बल्कि आश्रम अथवा गुरुकुल होते थे। यहाँ बच्चो को पढ़ाया जाता था। यहाँ के नियम बड़े सख्त होते थे। गुरु के आदेश का पालन सर्वोपरि माना जाता है। आश्रम में शिष्य दूर दूर से पढ़ने आते थे। यहाँ शिष्य सम्पूर्ण एकाग्रता के साथ पढ़ते थे।
विद्यालय में गुरु यानी शिक्षक का महत्व
अभी आश्रम की जगह पाठशाला यानी विद्यालय ने ले ली है। अब छात्रों यानी शिष्यों के लिए बड़े बड़े विद्यालय मौजूद है। यहाँ प्रत्येक विषय के अनुसार शिक्षक मौजूद है। शिक्षक बच्चो की उन्नति के लिए परिश्रम करते है, ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो।
आज कल शहरों में विशाल स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय इत्यादि मौजूद है। ऐसे में युवको को उनके आने वाले भविष्य के लिए तैयार किया जाता है। ऐसे में युवको को अपने गुरु का मान सम्मान करना चाहिए।
हमारे पथ प्रदर्शक गुरु जी
गुरु अपने शिष्य को सही दिशा की ओर ले जाते है। गुरु अपने शिष्यों को अच्छे बुरे का पाठ भी पढ़ाते है। गुरु जी जिंदगी के मुश्किलों से अपने शिष्यों को जूझना और लड़ना सिखाते है। गुरु जी अपने शिष्यों को मानसिक तौर पर मज़बूत बनाते है, ताकि कोई भी कठिनाई के समक्ष वह अपने घुटने ना टेक दे। गुरु जी शिष्यों के पथ प्रदर्शक है।
गुरु शब्द का निर्माण
गुरु शब्द का निर्माण दो अक्षरो से मिलकर हुआ है। गु + रु = गुरु। गु का तात्पर्य है अन्धकार और रु का अर्थ है रोशनी। गुरु वह इंसान होता है जो अपने शिष्यों को अन्धकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है।
जिन्दगी में मनुष्य अंधकार रूपी मुश्किलों में घिर जाता है। गुरु का ज्ञान उसे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। शिष्यों के लिए गुरु सब कुछ होता है। माता पिता अपने बच्चो को जन्म देते है और पालन पोषण करते है। लेकिन शिक्षा बच्चो को गुरु से प्राप्त होती है।
गुरु के बिना ज़िन्दगी संकटपूर्ण
यदि अन्धकार होता है तो हम अपने समाग्रियों को टटोलते रहते है। गुरु के बैगर जिन्दगी में अन्धकार छा जाता है। गुरु रूपी प्रकाश सभी के ज़िन्दगी में अनिवार्य होता है। गुरु रूपी प्रकाश के ज़रिये व्यक्ति अपने ज़रूरी चीज़ो और रास्तो को ढूंढ लेता है।
जिन्दगी में अगर शिष्य को गुरु नहीं मिला तो शिष्य का जीवन दुखो से भर जाता है। जीवन का सही रास्ता हमे गुरु जी दिखाते है।
गुरु से अधिक शक्तिशाली कोई नहीं
दुनिया का सबसे मज़बूत हिस्सा गुरु और उनकी शिक्षा होती है। गुरु के ज्ञान के बैगर शिष्यों का जीवन अधूरा है। बड़े बड़े लोग भी अपने गुरुओं के समक्ष शीश झुकाकर उनका सम्म्मान करते है। गुरुओ के सत्कार में उनके शिष्य कोई भी कमी नहीं छोड़ते है।