Hindi, asked by prajapatijalpa5527, 1 year ago

Vidya bhanti sadguna.meaning in Hindi

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Answered by reddyakshaykumar500
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चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सृष्टि की आदि में उत्पन्न ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है जो ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा की आत्माओं में प्रेरणा द्वारा प्रकट वा स्थापित किया था। इन चार ऋषियों ने ईश्वर की ही प्रेरणा से चारों वेदों का ज्ञान पंचम ऋषि ब्रह्मा जी को कराया। इस प्रकार सृष्टि के आरम्भ में पांच ऋषि हुए। उन्हीं से अध्ययन व अध्यापन की परम्परा आरम्भ होकर वर्तमान समय तक चली आई है। यदि ईश्वर वेदों का ज्ञान न देता तो संसार में तब भी व उसके बाद भी अन्धकार ही अन्धकार होता, विद्या का प्रकाश कदापि न हुआ होता। जिस प्रकार ईश्वर ने सूर्य, चन्द्र व पृथिवी आदि सभी लोक लोकान्तरों व जड़ पदार्थों सहित पृथिवी, अग्नि, जल, वायु और आकाश को बनाया है, उसी प्रकार मनुष्यों की प्रमुख आवश्यकता ‘ज्ञान’ को जानकर उसका प्रकाश भी ईश्वर ने ही सूर्य, चन्द्र आदि प्रकाश्य-प्रकाशक लोकों की भांति ईश्वर ने ही किया है। संसार वा ब्रह्माण्ड में ईश्वर ही सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक व सर्वान्तर्यामी है। ज्ञान का आदि स्रोत व अन्तिम स्रोत भी ईश्वर ही है। जीवात्मा में जो ज्ञान है वह सब ईश्वर से ही उसको प्राप्त होता है भले ही वह इसके प्राप्त करने में ईश्वर प्रदत्त शरीर से कुछ पुरुषार्थ व तप अवश्य करता है। यदि ईश्वर ज्ञान न दे तो जीवात्मा स्वयं ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता। जीवात्मा व मनुष्यों में यह सामथ्र्य नहीं की वह सृष्टि के आरम्भ में भाषा व ज्ञान की उत्पत्ति कर सके। ज्ञान का निमित्त कारण ईश्वर ही है। ज्ञान की वाहक व धारक बुद्धि परमात्मा ही बनाता है। यदि वह उसमें ज्ञान ग्रहण करने व धारण करने की सामथ्र्य उत्पन्न न करता तो मनुष्य कुछ भी कर लेता, वह वेद से भी ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकता था। मनुष्य ईश्वर का सदा सर्वदा ऋणी है जिससे कुछ नाममात्र उ़ऋण होने के लिए ही वेदों में ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का विधान किया गया है। ईश्वर की स्तुति करने से जीवात्मा की उससे प्रीति होती है, ईश्वर से प्रार्थना करने से जीवात्मा में अहंकार का नाश होता है और ईश्वर की उपासना करने से ईश्वर के सभी सदगुण जीवात्मा में प्रविष्ट होकर जीवात्मा को आत्मोन्नति कराने के साथ मोक्ष प्रदान कराने में भी सहायक होते हैं। यहां वैदिक नियम का उल्लेख भी कर दें जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नियम है कि सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उनका आदि मूल परमेश्वर है। यह नियम ऋषि दयानन्द द्वारा वैदिक ज्ञान के आधार पर निर्मित है। यह नियम आर्यसमाज का प्रथम नियम भी है। नियम में कहा गया है कि सब सत्य विद्याओं का आदि मूल परमेश्वर है। परमेश्वर ही सब पदार्थों, जो ब्रह्माण्ड में है, उनका भी आदि मूल है। इस नियम में वेदोत्पत्ति और सृष्टि रचना की झलक मिलती है कि यह ईश्वर से ही हुईं हैं।

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