Hindi, asked by FuriousPriyanshu, 1 month ago

vidyarthi jivan mein samay ka mahatva​

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Answered by dearcute
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Answer:

विद्यार्थी जीवन किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण समय होता हैं | विद्यार्थी जीवन में ही हर एक व्यक्ति अपने जीवन को सफल और परिपूर्ण बनाने के लिए अच्छा ज्ञान प्राप्त करता हैं |

जितना भी ज्ञान उसे विद्यार्थी जीवन में मिलता हैं वो ज्ञान उसके जीवन में बहुत काम आता हैं | विद्यार्थी जीवन यह ज्ञान प्राप्त करने का समय होता हैं |

Explanation:

विद्यार्थी जीवन का अपना महत्व होता हैं | विद्यार्थी जीवन में हर व्यक्ति अपना जीवन खुद सफल बनाता हैं | जब वो ज्ञान प्राप्त करता हैं तो वो एक अच्छा नागरिक बन सकता हैं |

इस समय में उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता हैं | आज का विद्यार्थी कल इस देश का नागरिक बनेगा | वो अच्छा ज्ञान प्राप्त करके इस देश सैनिक, अध्यापक या नेता बनके अपने देश का कार्यभाल संभालेगा |

जिस विद्यार्थी देश के सुशिक्षित नागरिक होंगे वह देश का विकास जल्दी से जल्दी हो जायेगा | इसलिए विद्यार्थी जीवन महत्व स्वत सिद्ध होती हैं |

विद्यार्थी का मुख्य उद्देश विद्या प्राप्त करना होता हैं | विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन को सफलतापूर्वक बनाता हैं | और देश का अच्छा नागरिक बन जाता हैं | महात्मा गांधीजी कहते थे की, शिक्षा तन, मन और आत्मा का विकास हैं |

पुस्तक पढने से ज्ञान प्राप्त नही होता हैं | उसके के लिए चिंतन और मनन भी करना चाहिए | एक आदर्श अध्यापक अपने गुणों के द्वारा विद्यार्थी को अच्छा ज्ञान देकर उसका जीवन परिपूर्ण बना देता हैं | शिक्षा के साथ साथ शरीर के लिए व्यायाम और खेलना भी बहुत जरुरी हैं |

विद्‌या केवल पुस्तकों में नहीं होती । ज्ञान की बातें केवल गुरुजनों के मुखारविन्द से नहीं निकलतीं । ज्ञान तो झरने के जल की तरह प्रवाहमान रहता है । विद्‌यार्थी जीवन इस प्रवाहमान जल को पीते रहने का काल है । खेल का मैदान हो या डिबेट का समय, भ्रमण का अवसर हो अथवा विद्‌यालय की प्रयोगशाला, ज्ञान सर्वत्र भरा होता है । विद्‌यार्थी जीवन इन भांति- भांति रूपों में बिखरे ज्ञान को समेटने का काल है । स्वास्थ्य संबंधी बातें इसी जीवन में धारण की जाती हैं । व्यायाम और खेल से तन को इसी जीवन में पुष्ट कर लिया जाता है । विद्‌यार्थी जीवन में पढ़ाई के अलावा कोई ऐसा हुनर सीखा जाता है जिसका आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जा सके ।

गुण- अवगुण, अच्छा-बुरा, पुण्य-पाप, धर्म- अधर्म सब जगह है । विद्‌यार्थी जीवन में ही इनकी पहचान करनी होती है । चतुर वह है जो सार ग्रहण कर लेता है और असार एवं सड़े-गले का त्याग कर देता है । सार है विद्‌या, सार है सद्‌गुण और असार है दुर्गुण । विद्‌यार्थी जीवन में दुर्गुणों से एक निश्चित दूरी बना लेनी चाहिए

Answered by srushti33342
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