Vigyapan for phone in Hindi
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कॉपी की भाषा विज्ञापित की जाने वाली वस्तु के लिए तैयार किए गए संदेश के अनुकूल होनी चाहिए ताकि संदेश बगैर किसी रुकावट के उस तक पहुंच सके, जिसके लिए तैयार किया गया है।उसमें ऐसी विशेषता होनी चाहिए जो ग्राहकों को उक्त सामग्री खरीद लेने के लिए प्रेरित कर सके।विज्ञापन के लिए तैयार की गई कॉपी प्रामाणिक होनी चाहिए।यह प्रमाणिकता तथ्यों एवं आंकड़ों की सहायता से प्रस्तुत की जा सकती है।कॉपी में अपनेपन का आभास होना चाहिए।
किसी भी वस्तु का विज्ञापन सामान्यतया समाजार-पत्रों या पत्रिकाओं के माध्यम से ही प्रकाशित किया जाता है जो लाखों लोगों द्वारा पढ़ा जाता है लेकिन इसका संबोधन निजी तौर पर किया जाता है क्योंकि इसे खरीदने वाला एक व्यक्ति होता है न कि व्यक्तियों का समूह, जैसे किसी फेसक्रीम के विज्ञापन में कहा जाता है-‘आप जैसी महिलाओं के लिए ही विशेषतौर पर बनी।’ यह बात हर पाठिका के लिए कही जान पड़ती है।कॉपियों के प्रकार भी अनेक होते हैं।
विवरणात्मक कॉपी : ऐसी कॉपी में वस्तु के निर्माण की पूरी कहानी दी जाती है। पाठक जब उसे पढऩे की कोशिश करता है तो उसे परिणाम जानने के लिए अंत तक पढऩा ही पड़ता है।इसमें उस वस्तु से संबंधित सम्पूर्ण विवरण सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
प्रसंगानुकूल कॉपी : इस तरह की कॉपी में वस्तु और किसी घटना या प्रसंग विशेष को जोड़ा जाता है जैसे-किसी क्रिकेट मैच के दौरान जब कोई विज्ञापन आता है तो उसे इस रूप में कहा जाता है कि फलां क्रिकेटर फलां हेयरक्रीम ही उपयोग में लाता है, इसीलिए उसमें चुस्ती बनी रहती है।
शैक्षणिक कॉपी : इस कॉपी का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को वस्तु के उपयोग के बारे में जानकारी देना होता है।
प्रश्नात्मक कॉपी : ऐसी कॉपी में प्रश्रों के माध्यम से ग्राहक में जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है जैसे-‘क्या आपको अपने गिरते हुए बालों की चिंता नहीं।?’ ऐसे प्रश्र कुछ सोचने और उसके अनुसार काम करने को प्रेरित करते हैं।
संस्थागत कॉपी : यह कॉपी मुख्यत: किसी संस्था की ख्याति को बढ़ाने के लिए तैयार की जाती है। ऐसी कॉपी से ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिसमें संस्था विशेष की अच्छाइयों को सामने लाया जा सके ताकि ग्राहक समझ ले कि इस संस्था या कम्पनी द्वारा निर्मित सामग्री निश्चित रूप से अच्छी होगी।
कारणयुक्त कॉपी : इस तरह की कॉपी में इस बात का कारण दिया जाता है कि फलां वस्तु ही क्यों खरीदी जाए? अर्थात फलां वस्तु को खरीदने के पीछे क्या-क्या कारण विशेष रूप से हो सकते हैं।
प्रशंसात्मक कॉपी : यह कॉपी विज्ञापित वस्तु की साख की वृद्धि करने में सहायक होती है लेकिन इस तरह की कॉपी का बराबर प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इससे उस वस्तु का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विज्ञापन की सफलता 50 से 70 प्रतिशत तक उसके शीर्षक या शीर्ष पंक्ति पर निर्भर करती है। सामान्यता कॉपी लेखक मूल पाठ लिखने से पहले ही शीर्षक या हैडलाइन लिख लिया करते हैं। हैडलाइन पढऩे एवं समझने में सरल होना चाहिए। संक्षिप्त व प्रेरणाप्रद होने के साथ ही इसमें चुने हुए असरदार शब्दों का उपयुक्त प्रयोग होना भी जरूरी है।
किसी विज्ञापन एजैंसी से सम्पर्क करके उन्हें अपनी क्षमता के बारे में बताइए। अगर वे आपसे संतुष्ट होकर आपको कार्य दे देते हैं तो फिर समझ लीजिए कि आपका स्वॢणम करियर तैयार है। इस क्षेत्र में भरपूर पारिश्रमिक के साथ-साथ शोहर
किसी भी वस्तु का विज्ञापन सामान्यतया समाजार-पत्रों या पत्रिकाओं के माध्यम से ही प्रकाशित किया जाता है जो लाखों लोगों द्वारा पढ़ा जाता है लेकिन इसका संबोधन निजी तौर पर किया जाता है क्योंकि इसे खरीदने वाला एक व्यक्ति होता है न कि व्यक्तियों का समूह, जैसे किसी फेसक्रीम के विज्ञापन में कहा जाता है-‘आप जैसी महिलाओं के लिए ही विशेषतौर पर बनी।’ यह बात हर पाठिका के लिए कही जान पड़ती है।कॉपियों के प्रकार भी अनेक होते हैं।
विवरणात्मक कॉपी : ऐसी कॉपी में वस्तु के निर्माण की पूरी कहानी दी जाती है। पाठक जब उसे पढऩे की कोशिश करता है तो उसे परिणाम जानने के लिए अंत तक पढऩा ही पड़ता है।इसमें उस वस्तु से संबंधित सम्पूर्ण विवरण सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
प्रसंगानुकूल कॉपी : इस तरह की कॉपी में वस्तु और किसी घटना या प्रसंग विशेष को जोड़ा जाता है जैसे-किसी क्रिकेट मैच के दौरान जब कोई विज्ञापन आता है तो उसे इस रूप में कहा जाता है कि फलां क्रिकेटर फलां हेयरक्रीम ही उपयोग में लाता है, इसीलिए उसमें चुस्ती बनी रहती है।
शैक्षणिक कॉपी : इस कॉपी का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को वस्तु के उपयोग के बारे में जानकारी देना होता है।
प्रश्नात्मक कॉपी : ऐसी कॉपी में प्रश्रों के माध्यम से ग्राहक में जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है जैसे-‘क्या आपको अपने गिरते हुए बालों की चिंता नहीं।?’ ऐसे प्रश्र कुछ सोचने और उसके अनुसार काम करने को प्रेरित करते हैं।
संस्थागत कॉपी : यह कॉपी मुख्यत: किसी संस्था की ख्याति को बढ़ाने के लिए तैयार की जाती है। ऐसी कॉपी से ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिसमें संस्था विशेष की अच्छाइयों को सामने लाया जा सके ताकि ग्राहक समझ ले कि इस संस्था या कम्पनी द्वारा निर्मित सामग्री निश्चित रूप से अच्छी होगी।
कारणयुक्त कॉपी : इस तरह की कॉपी में इस बात का कारण दिया जाता है कि फलां वस्तु ही क्यों खरीदी जाए? अर्थात फलां वस्तु को खरीदने के पीछे क्या-क्या कारण विशेष रूप से हो सकते हैं।
प्रशंसात्मक कॉपी : यह कॉपी विज्ञापित वस्तु की साख की वृद्धि करने में सहायक होती है लेकिन इस तरह की कॉपी का बराबर प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इससे उस वस्तु का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विज्ञापन की सफलता 50 से 70 प्रतिशत तक उसके शीर्षक या शीर्ष पंक्ति पर निर्भर करती है। सामान्यता कॉपी लेखक मूल पाठ लिखने से पहले ही शीर्षक या हैडलाइन लिख लिया करते हैं। हैडलाइन पढऩे एवं समझने में सरल होना चाहिए। संक्षिप्त व प्रेरणाप्रद होने के साथ ही इसमें चुने हुए असरदार शब्दों का उपयुक्त प्रयोग होना भी जरूरी है।
किसी विज्ञापन एजैंसी से सम्पर्क करके उन्हें अपनी क्षमता के बारे में बताइए। अगर वे आपसे संतुष्ट होकर आपको कार्य दे देते हैं तो फिर समझ लीजिए कि आपका स्वॢणम करियर तैयार है। इस क्षेत्र में भरपूर पारिश्रमिक के साथ-साथ शोहर
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