Vriksh hamare liye Kish prakar labhdayak hai . Start from par tadha vriksh .......
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वृक्ष हमारे जीवन दाता
वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक हैं । सृष्टि के प्रारंभिक क्षणों से पृथ्वी मानव की सहचरी रही है। इसी के सौरभमय रमणीय नैनाभिराम वातावरण में मानव ने स्वार्गिक आनंद का अनुभव किया है। यही नहीं प्रकृति के प्रति उसके मन में एक अटूट श्रद्धा और आस्था रही है। निस्संदेह प्रकृति के अनमोल उपहारों में से ये हरे भरे तथा सुखद छाया और शीतलता प्रदान करने वाले वृक्ष किसके मन में आस्था के अंकुर उत्पन्न नहीं कर देते। अतः प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, जिनमे वृक्षों का स्थान प्रकृति के उपहारों में से सर्वोपरि है। वृक्ष मानव के चिरंतर साथी हैं, कभी वो वृक्षों की छाया में बैठकर अपनी थकन मिटाता है, तो कभी इनके मधुर फल खाकर अपनी भूख शांत करता है। तभी तो वृक्षों को मनुष्य का आश्रयदाता माना जाता है। इस धरती पर प्रकिर्तिक शोभा को बढ़ने वाले ये वृक्ष ही हैं, धरती की गोद में यदि ये हरे भरे वृक्ष ना होते तो यह साड़ी पृथ्वी मरघट के सामान डरावनी और भयानक सी प्रतीत होती। वर्षा के हेतु ये वृक्ष ही हैं, इन वृषों से ही धरती की हरियाली जीवंत है।
यही कारन है की वृक्षों के प्रति मानव मन में अनादी काल से ही अगाध श्रद्धा का बोध रहा है, इन्ही की छाया में बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना की थी। यही वृक्ष उनकी साधना की तपस्थली भी थे। येही कारण है की ऋषि मुनियों की परंपरा से ही मानव के मन में वृक्षों के प्रति श्रद्धा का अटूट भाव रहा है। आज भी देवी देवताओं की पूजा इन वृक्षों के पत्तों एवं पुष्पों से की जाती है। सभी जानते हैं की परंपरा से देवी देवताओं के देवालय इन वृक्षों से सुशोभित होते रहे हैं। परंपरागत मान्यताओं के आधार पर इन वृक्षों में निवास करके देवताओं ने इनके महत्व को बहुत अधिक उच्च कोटि का दर्शा दिया है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी की वृक्ष तो शायद हमारे बिना भी रह सकते हैं लेकिन हम बिना वृक्षों के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
वृक्ष अमर हैं, धरती है इनकी माता,
ममतामयी माता की रक्षा सदा ही करते,
वर्षा में इसको कभी न कटने देते,
अशुद्ध हवाओं के ज़हर को पी करके,
मानव को नव जीवन देते, तभी तो
वृक्ष हमारे सच्चे जीवन दाता,
रखते सदा सुख दुःख में सच्चा नाता,
शीतल छाया मधुर फल-फूल लुटाते,
बदले में केवल मानव मन मोह लेते
वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर व पर्यावरण के संरक्षक हैं । सृष्टि के प्रारंभिक क्षणों से पृथ्वी मानव की सहचरी रही है। इसी के सौरभमय रमणीय नैनाभिराम वातावरण में मानव ने स्वार्गिक आनंद का अनुभव किया है। यही नहीं प्रकृति के प्रति उसके मन में एक अटूट श्रद्धा और आस्था रही है। निस्संदेह प्रकृति के अनमोल उपहारों में से ये हरे भरे तथा सुखद छाया और शीतलता प्रदान करने वाले वृक्ष किसके मन में आस्था के अंकुर उत्पन्न नहीं कर देते। अतः प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, जिनमे वृक्षों का स्थान प्रकृति के उपहारों में से सर्वोपरि है। वृक्ष मानव के चिरंतर साथी हैं, कभी वो वृक्षों की छाया में बैठकर अपनी थकन मिटाता है, तो कभी इनके मधुर फल खाकर अपनी भूख शांत करता है। तभी तो वृक्षों को मनुष्य का आश्रयदाता माना जाता है। इस धरती पर प्रकिर्तिक शोभा को बढ़ने वाले ये वृक्ष ही हैं, धरती की गोद में यदि ये हरे भरे वृक्ष ना होते तो यह साड़ी पृथ्वी मरघट के सामान डरावनी और भयानक सी प्रतीत होती। वर्षा के हेतु ये वृक्ष ही हैं, इन वृषों से ही धरती की हरियाली जीवंत है।
यही कारन है की वृक्षों के प्रति मानव मन में अनादी काल से ही अगाध श्रद्धा का बोध रहा है, इन्ही की छाया में बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना की थी। यही वृक्ष उनकी साधना की तपस्थली भी थे। येही कारण है की ऋषि मुनियों की परंपरा से ही मानव के मन में वृक्षों के प्रति श्रद्धा का अटूट भाव रहा है। आज भी देवी देवताओं की पूजा इन वृक्षों के पत्तों एवं पुष्पों से की जाती है। सभी जानते हैं की परंपरा से देवी देवताओं के देवालय इन वृक्षों से सुशोभित होते रहे हैं। परंपरागत मान्यताओं के आधार पर इन वृक्षों में निवास करके देवताओं ने इनके महत्व को बहुत अधिक उच्च कोटि का दर्शा दिया है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी की वृक्ष तो शायद हमारे बिना भी रह सकते हैं लेकिन हम बिना वृक्षों के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
वृक्ष अमर हैं, धरती है इनकी माता,
ममतामयी माता की रक्षा सदा ही करते,
वर्षा में इसको कभी न कटने देते,
अशुद्ध हवाओं के ज़हर को पी करके,
मानव को नव जीवन देते, तभी तो
वृक्ष हमारे सच्चे जीवन दाता,
रखते सदा सुख दुःख में सच्चा नाता,
शीतल छाया मधुर फल-फूल लुटाते,
बदले में केवल मानव मन मोह लेते
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