vruksha hamare mitra hain easy
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पेड हमारे प्राण हैं क्योंकि पेड़ ही हमें प्राणवायु प्रदान करते हैं । सघन वनों को हमारी धरती के फेंफड़े कहा जाता है । क्योंकि वन ही वायु के शोधक होते हैं । पेड़ ही तो है जो हमें जीवन देते हैं । फिर क्यों हम इन मूक परमार्थी पेड़ों को काट डालते हैं और विरोध भी नहीं करते । आखिर कब तक हम लोग अपने विनाश का कारण स्वयं बनते रहेंगे ? कृषि भूमि विस्तार, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण के कारण वनों का अतिशय क्षरण हो रहा है । वन प्रतिपालित जीवों का मरण हो रहा है । वनों की अंधाधुंध कटाई से जंगली जानवरों के आवास नष्ट हो रहे हैं जिससे वह मानव के रिहायशी इलाकों में आये दिन आ जाते हैं । पेड़ काटने से प्रदूषण बढ़ा है । धीरे-धीरे जंगलों का सफाया तो हो ही रहा है बस्तियों के पेड़ भी नदारद हो रहे हैं और हम पेड़ की छाया में खड़े होने का सुख खो रहे हैं । कहा जाता है कि जंगल में ही मंगल होता है । यकीनन जंगल ही जलवायु के रक्षक हैं । जंगल ही जंगली जानवरों के आश्रयदाता हैं ।
aparnachandel:
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