Hindi, asked by simranrawal415, 1 year ago

Vrutan lekhan about swachh Bharat abhiyaan which was presented in our school in hindi

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Answered by GeniusShweta
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भारतीय परम्परा में गुरुकुलों की स्थापना, नगरों से दूर प्राकृतिक परिवेश में की जाती थी। यह परिवेश जैव-विविधता से परिपूर्ण एवं प्राकृतिक संसाधनों (हवा, पानी, मिट्टी और जंगल) से समृद्ध होता था। आश्रम के आस-पास रहने वाले जीव-जन्तु सुखी और स्वस्थ रहते थे। गुरुकुल में उनका जीवन सुरक्षित रहता था। गुरू द्वारा शान्त वातावरण में शिष्यों को शिक्षा दी जाती थी। गुरुकुल में दी जाने वाली शिक्षा संस्कार और जीवन मूल्य गढ़ती थी। यही भारत के परम्परागत आदर्श गुरुकुलों की पहचान थी।
भारत की गुरू-शिष्य परम्परा बताती है कि छात्रों को संस्कारित करने में शिक्षकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। उनकी ज्ञान साधना द्वारा संवरे छात्र उत्तम नागरिक बन शासन व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते थे और मूल्य आधारित व्यवस्था को पुष्ट करते थे। गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा के आधार पर नीतिगत फैसले लिये जाते थे। बड़े से बड़ा राजा भी अनेक बार, सही निर्णय पर पहुँचने के लिये गुरुओं के पास मार्गदर्शन के लिये जाता था। गुरू को यथोचित सम्मान दे मार्गदर्शन भी पाता l
मौजूदा युग में स्कूलों ने गुरुकुल का स्थान ले लिया है। अपवादों को छोड़कर, सामान्यतः अब वे पूरी तरह नगरों से दूर प्राकृतिक परिवेश में स्थापित नहीं होते। कुछ स्कूल तो घनी बस्ती में होते हैं। इसके अलावा, शिक्षा के स्वरुप में बदलाव हुआ है। सारे बदलावों के बावजूद भारत के लोग गुरुओं तथा शिक्षकों का सम्मान करते हैं। शिक्षक भी अपना दायित्व निभाते हैं। वे लाखों-करोड़ों छात्रों के मार्गदर्शक हैं। शिक्षक का समाज में ऊँचे स्थान का कारण यही है कि हर साल 5 सितम्बर को महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो भारत के पूर्व राष्ट्रपति भी थे, के जन्म दिवस को, शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
देश के अनेक स्कूलों में विभिन्न कारणों से स्वच्छता तथा सेनिटेशन जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। यह कमी मुख्यतः नगरों में कम और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। इस कमी को दूर करने के लिये पूर्व में अनेक प्रयास किये गये हैं पर अभी भी अनेक स्कूलों में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जिन स्कूलों में उपर्युक्त मूलभूत सुविधायें मौजूद हैं उन्हें भी सँवारा और बेहतर बनाया जाता है। कुछ निजी स्कूलों में स्वच्छता तथा सेनिटेशन जैसी मूलभूत सुविधाओं की स्थिति थोड़ी बेहतर है।
स्वच्छता तथा सेनिटेशन की व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिये स्वच्छ भारत तथा स्कूलों में शौचालय निर्माण को स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज पर प्रारम्भ किया गया है। उम्मीद है इस अभियान के कारण, स्कूलों में भी परिसर स्वच्छ होगा और छात्रों तथा छात्राओं के लिये शौचालय की पृथक-पृथक व्यवस्था कायम होगी। जहाँ तक परिसर की साफ-सफाई का सवाल है तो यह छोटी चुनौती है पर सेनिटेशन उससे कहीं बड़ी और गम्भीर चुनौती है। अनुभव बताता है कि शौचालय निर्माण और उसका सफल तथा सतत संचालन दो पृथक-पृथक कार्य हैं इसलिये स्वच्छ भारत अभियान शौचालय निर्माण तक सीमित नहीं हो सकता। उसके साथ मल-मूत्र को बहाने के लिये पानी की व्यवस्था एवं गन्दगी के सुरक्षित निपटान, शौचालय स्थल एवं हाथ-पैर की साफ-सफाई एवं बदबू को खत्म करने की व्यवस्था भी कायम करनी होगी। आम तौर पर शौचालय की एक बार सफाई पर पाँच से दस लीटर पानी खर्च होता है।
यदि किसी स्कूल में छात्रों की संख्या 500 मानी जाये और प्रत्येक विद्यार्थी द्वारा शौचालय का दो बार उपयोग माना जाये तो प्रतिदिन लगभग 5,000 से 10,000 लीटर पानी की आवश्यकता होगी। यह मात्रा स्कूल में छात्रों की संख्या पर निर्भर होगी। अनेक स्कूलों में अभी भी पानी की माकूल व्यवस्था नहीं है। आम तौर पर स्कूलों में हेन्ड पम्प, कुआँ या नगरीय निकाय द्वारा नल-जल योजना से पानी की पूर्ति की जाती है। अनेक बार इन व्यवस्थाओं से पेयजल और सेनिटेशन की माँग पूरा हो पाना संदिग्ध होता है। इसलिये प्रत्येक स्कूल में पेयजल तथा सेनिटेशन की व्यवस्था का जायजा लेकर उसे पुख्ता और स्थायी करना होगा। इसके अलावा शौचालय में उत्पन्न होने वाली बदबू को खत्म करने के लिये फिनाइल की सतत व्यवस्था करनी होगी। इसे किये बिना परिणाम आधे-अधूरे रहेंगे। शौचालय बदबू और इन्फेक्शन के केन्द्र बनेंगे। छात्र उनका उपयोग करने स्कूल परिसर और शौचालय के सतत एवं व्यवस्थित उपयोग में शिक्षकों की भूमिका एवं मार्गदर्शन निश्चय ही महत्वपूर्ण हो सकता है। यह काम पानी के बुद्धिमत्तापूर्ण तथा किफायती उपयोग और मल-मूत्र निपटान के कारण मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों से अल्प मात्रा में होने वाले स्थानीय प्रदूषण और बदबू के निपटान से सम्बद्ध है। इस व्यवस्था को निरापद बनाने के लिये स्वच्छता तथा सेनिटेशन चेतना के सन्देश को हर छात्र/ छात्रा तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
पानी के उपयोग से जुड़ी जागरुकता बेहद महत्वपूर्ण है। बच्चों को अशुद्ध पानी के उपयोग और आधी-अधूरी साफ-सफाई से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। उसी तरह बदबूदार वातावरण में साँस लेने और इन्फेक्शन से होने वाली हानियों के बारे में भी शिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिये स्कूल द्वारा सरल स्थानीय भाषा में साहित्य तैयार किया जा सकता है। स्कूल में साफ-सफाई तथा सेनिटेशन पर चित्रकला, कठपुतली, वाद-विवाद तथा निबन्ध प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा सकती हैं। छात्रों को प्रोत्साहित करने और पालकों को अभियान में सम्मिलित करने से व्यवस्था में सुधार होगा।

 
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