(Vykti Ke jeevan me Dharm aur rashtra ki bhoomika )
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देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। राष्ट्र जैसे छोटे से शब्द में विशाल असीमित और बहुआयामी अर्थ और कर्तव्यबोध का सार समाहित हैं। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने राष्ट्र प्रगति के लिए आवश्यक होता है कि वह जिस दशा में है जिस परिस्थिति में है जहां है सकारात्मक सोच के साथ अपना योगदान दे। हमारे राष्ट्र का आदर हो तो इसमें जन्मे व्यक्ति को भी लोग आदरणीय कहेंगे। हमारा देश कभी सोने की चिडि़या कहा जाता था। फिरंगियों की नापाक नजरें इस ओर गई और कुटिल चालों के जरिए पहले व्यापार को ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में भारत आए। फिर उन्होंने धीरे-धीरे ऐसे लोगों की पहचान की जो राष्ट्र के प्रति गंभीर नहीं थे, लालची और पाखंडी थे। उन्हीं के द्वारा देश से गद्दारी कराई। नतीजा यह निकला कि हमारा राष्ट्र गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया। अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित और स्वाभिमानियों की अंतर आत्मा में चेतना आई तथा अंग्रेजों के प्रति नफरत और तिरस्कार का वातावरण बना। कई राष्ट्रभक्त ऐसे थेजिनको न इतिहास में स्थान मिला और न ही प्रशंसा हासिल हो सकी। लेकिन अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी निभाने में असहनीय यातनाएं झेलते रहे। अन्त में प्राणों को भी राष्ट्र के प्रति होम कर दिया। हम सभी का नैतिक दायित्व है कि हम अपने राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा के लिए मर मिटने को तैयार रहें। राष्ट्र निर्माण में अपनी योग्यता सिद्ध करें। हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि मैं ही राष्ट्र निर्माण के लिए उपयुक्त व्यक्ति हूं। हमारे द्वारा किए गए कार्य से ही राष्ट्र निर्माण में सहयोग होगा। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। राष्ट्र निर्माण में अपनी योग्यता सिद्ध करें। हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि मैं ही राष्ट्र निर्माण के लिए उपयुक्त व्यक्ति हूं। हमारे द्वारा किए गए कार्य से ही राष्ट्र निर्माण में सहयोग होगा। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। हमें शिक्षा का प्रसार-प्रचार, श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग, वैज्ञानिक सोच के साथ अग्रसर होना चाहिए।