Social Sciences, asked by ikhlaas2671, 1 year ago

What do you know about Kalibai?

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Answered by Sivaraghavi6103
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महारावल शिक्षा के प्रचार प्रसार से भयभीत हो गए। उन्होंने सोचा कि– किसान और जनता शिक्षित हो जाएगी। तो फिर वह अपने अधिकार मांगेंगे। जनता हमारे राजकाज मे भी दखल देने लगेगी। स्थिति विकट हो जाएगी।

 

महारावल ने पाठशाला बंद करने के आदेश दे दिए। इसके लिए आवश्यक कानून भी बनाए गए। मजिस्ट्रेट ने पाठशालाएं बंद करने का अभियान शुरू कर दिया। अभियान को सफल बनाने के लिए पुलिस और सेना की भी मदद ली गई।

 

 

पाठशाला बंद अभियान के कार्यकर्ता पाल नामक गांव पहुंचे। यह घटना 19 जून 1947 की थी। पाल गांव में एक पाठशाला थी। पाठशाला के मालिक नानाभाई खाट थे। पाठशाला के अध्यापक सेंगाभाई थे। उस समय दोनों ही वहां मौजूद थे। पाठशाला में विद्यार्थी अभी आए नही थे।

 

 

मजिस्ट्रेट ने नानाभाई को स्कूल में ताला लगाने के लिए कहा। नानाभाई ने ताला लगाने से मना कर दिया। मजिस्ट्रेट के साथ पुलिस भी थी। मजिस्ट्रेट ने पुलिस को उनके साथ सख्ती बरतने का आदेश दिया।उसने पुलिस से जबरजस्ती स्कूल पर ताला लगाने को भी कहा।

 

नानाभाई और सेंगाभाई ने उनका पुरजोर विरोध किया। बदले मे पुलिस ने उन दोनो पर लाठियां बरसाई। सैनिकों ने लात, घूंसे और थप्पड़ से उनकी खूब पिटाई की। लेकिन दोनो ही कर्तव्यपराण थे, इसलिए अपनी बात पर अडे रहे।

 

पुलिस ने जबरन स्कूल में ताला लगा दिया। और पुलिस उन्हें मारते मारते अपने साथ ले जाने लगी। नानाभाई पर बंदूक की बट बरसाई जा रही थी। वह दर्द से छटपटा रहे थे। परंतु पुलिस उन्हे बडी बेरहमी पीटती रही। रास्ते में असहनीय पीड़ा से नानाभाई ने अपने प्राण त्याग दिए।

 

सेंगाभाई भी बेहोश हो गए। परंतु जालिम इतने पर भी न रूके। पुलिस ने रस्सी का एक सिरा उनकी कमर मे बांध दिया और दूसरा सिरा अपने ट्रक मे बांध लिया।

 

देखते ही देखते वहां काफी भीड इकट्ठा हो गई। लेकिन किसी की हिम्मत न हुई जो पुलिस के खिलाफ आवाज़ उठा सके।

 

पुलिस की गाड़ी सेंगाभाई को घसीटते हुए चली। तभी एक बारह वर्षीय बालिका ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। उस बालिका का नाम कालीबाई था। वह भील गांव की बालिका थी। कालीबाई अपने खेतों में घास काट रही थी। उसके हाथ मे दरांती थी।

 

 

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उसने सेंगाभाई की दुर्दशा देखी। सेंगाभाई उसके गुरू थे। उसे पढाते थे। अपने मास्टर की दुर्दशा देख वह पुलिस की गाडी के पिछे दौडी। उसने जोर – जोर से चिल्लाना शुरू किया– “मेरे मास्टर जी को छोड दो” इन्हे क्यो घसीट रहे हो, कहाँ ले जा रहे हो इन्हें?” ।

दौडते दौडते वह गाडी के पास पहुंच गई। उसने आगे बढकर दरांती से रस्सी काटनी चाही। इतने मे पुलिस ने गाडी रोक दी। पुलिस ने कालीबाई को डराया धमकाया और वापस लौट जाने को कहा।

कालीबाई ने पुलिस की एक न सुनी । वह मास्टर जी को बचाना चाहती थी। उसने निडर होकर रस्सी को काट दिया। सैनिक कालीबाई पर बंदूक ताने हुए थे। परंतु कालीबाई को अपनी जान की परवाह नही थी।

छोटी सी बालिका के हौसले को कई महिलाओं ने देखा। वे सब भी उसके पास आ गई। सेंगाभाई बेहोश थे। बालिका ने एक महिला से पानी लाने को कहा।

बालिका की हठ से पुलिस रोष मे आ गई। सैनिकों ने उस पर गोलियां चला दी। कालीबाई गोलियां खाकर गिर पडी। उसके साथ अन्य महिलाएं भी घायल हो गई। परंतु कालीबाई ने सेंगाभाई को बचा लिया। उसने अपने गुरू को बचाकर ,गुरू-शिष्य, की दुनिया में एक नया इतिहास बनाया।

गुरु शिष्य के अनूठे उदाहरण इतिहास में बहुत कम है। महाभारत के युग मे एक गुरूभक्त थे, जो एकलव्य के नाम से आज तक अमर है। उनके गुरु द्रोणाचार्य थे। गुरू के मांगने पर एकलव्य ने अपने हाथ का अंगूठा काटकर उन्हें गुरू दक्षिणा मे भेंट कर दिया था। परंतु आधुनिक युग की कालीबाई ने जो किया वह एक अनूठी मिसाल है।

कालीबाई के साहस से भील वासियों की आंखें खुल गई। उन्होंने मारू ढोल बजा दिया। भीलवासी पुलिस पर आक्रमण करने को तैयार हो गए। पुलिस को मालूम था कि मारू ढोल की आवाज मारने मरने का संकेत है। इसलिए वे सब जल्दी से अपनी गाडी मे सवार हुए और वहां से भाग गए।

मारू ढोल की आवाज पुरे भील गांव मे फैल गई। पूरे भील वासी हथियारों से लैस वहा पहुंच गए। पुलिस और सैनिक तब तक वहां से भाग चुके थे। नानाभाई का शव और कालीबाई सहित सभी घायलों को चारपाई पर रखकर डूंगरपुर लाया गया। वहा उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया।

कालीबाई वहां चालीस घंटे तक बेहोश रही। मूक बना कालचक्र सब कुछ देखता रहा। डॉक्टरों के वश मे कुछ नही था। कालीबाई ने 12 वर्ष की उम्र में इतनी बडी कुर्बानी दे दी। कालीबाई अपने शरीर को छोड चली। उनकी आत्मा परमात्मा मे समा गई।

कालीबाई को आधुनिक युग का एकलव्य कहा जाने लगा। उसने अपने गुरू की जान बचाई और शाही सामंतों की बलिदेवी पर चढ गई। वह बलिदान के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर गई। उसके बलिदान से आदिवासियों मे नई चेतना जागी।

डुंगरपुर राज्य में एक पार्क बनवाया गया। वह पार्क प्रजा ने बनवाया। यह पार्क नानाभाई खाट और कालीबाई की याद मे था। पार्क में दोनो की प्रतिमाएं स्थापित की गई। 19 जून को रास्तापाल गांव में मेले का आयोजन होता है। इस दिन हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते है। ये सब लोग रास्तापाल गांव के आसपास से आते है। इस दिन बच्चे, बडें, बुढे सभी शहीदों की प्रतिमा के सम्मुख मौन खडे होते है। इस तरह वह सभी उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है, सभी की आंखें उनकी याद मे नम हो उठती है।

कालीबाई हिस्ट्री इन हिन्दी, कालीबाई राजस्थान हिसट्री, कालीबाई की कहानी, जीवनी आदि शीर्षकों पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तो के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है।

Answered by rushadakohat
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Explanation:

Dungarpur was founded in 1282 AD by Rawal Veer Singh Dev. It was then popularly known as Dungar na Gharan. The word ‘Dungar’ stands for hills in the local dialect (Vagadi). Later, in 1358 AD, Rawal renamed it ‘Dungarpur’. Dungarpur is not only naturally beautiful but also boasts of marvelous historical architecture. Gaip Sagar, a lake situated in the heart of the city, adds charm and beauty to the town.

The college is named after a native tribal girl of twelve years, Kali Bai, who sacrificed her life in a desperate attempt to save her teacher from the brutal atrocities of the police force of the erstwhile state in the pre-independence era. The exceptional bravery and exemplary sacrifice earned her the title of ‘Veerbala’ (Brave Girl). Veerbala Kali Bai has become a symbol of undaunted courage and a source of inspiration for the young women of the region.

It was on June 19, 1947 that the state police force, ordered, as part of its diabolic drive to stem the spread of education, Nana Bhai Khant and Senga Bhai Bhil, the teachers of Rastapal, a tiny tribal village near Dungarpur, to close their school with immediate effect. The teachers refused to comply with the orders. As a result, the one was immediately killed by infuriated officers and the other was tied to a jeep and dragged on the rough road . Watching her teacher being dragged to death, the young pupil, Kali Bai, lost her patience and in a bid to save his life, picked up a sickle and severed the rope with a stroke. The inflictors then opened fire at the young saviour. Fatally wounded, Kali Bai fell down on the ground and met a heroic end for the cause of education.

Despite being rich in cultural heritage and skills of art and craft, the tribal community of Dungarpur has not been able to make significant progress in terms of higher education. The situation among tribal women is much less encouraging. The mission of the college, therefore, is to promote higher education among tribal women of Dungarpur and neighbouring areas. As the first government girls’ college of the district, it has put before itself the aim of providing avenues of education, especially higher education for the tribal population of Dungarpur.

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