What is sansmaran lekh in hindi?? Please give me a small sansmaran lekh of any hindi writer... Thankyou ????????
Answers
Answered by
2
hlo friend
HERE IS UR ANSWER
संस्मरण लेखन क्या है?
संस्मरण लेखन क्या है?
संस्मरण लेखन क्या है? अन्य व्यक्ति से जुड़ी अपनी स्मृतियों का लेखन. जब हम किसी अन्य व्यक्ति से जुडी अपनी स्मृतियों का लेखन करते हैं, तो हमारा स्व भी उसमें स्वतः आ जाता है. जिस व्यक्ति को हम बहुत नज़दीक से जानते हैं, उसे पहचानने का दावा करते हैं, उसके बारे में यदि कुछ लिखेंगे तो उस लेखन में खुद को अदृश्य नहीं रख सकते. हम उसमें दिखेंगे ही दिखेंगे.
'आम आदमी की ख़ास कहानी : 5 : ज्वाला से ज्वालामुखी तक', इस संस्मरण की अपनी इस सखी पर मैंने तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व एक कहानी लिखी थी, 'ढाई आखर प्रेम का'. कहानी में असली स्थितियाँ नहीं लिखी थीं, कल्पना का मिश्रण था, पर संवाद वहाँ भी सच्चे थे. कहानी का अंत यूँ हुआ था : सखी मेरे हाथ से पुस्तक खींच कर परे फ़ेंक देती है और कहती है, 'पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित हुए.' और मैं सोचती रह जाती हूँ कि क्या इसने उन ढाई आखरों का अर्थ समझा है? : पर इस संस्मरण का कोई अंत नहीं. ज्वाला (नकली नाम) आज भी मेरी सखी है. जब तक जीवन चलेगा, यह संस्मरण भी चलेगा.
अब पुनः नए सिरे से इस स्मृति को लिखा है, जिसने एक कहानी का रूप ही ले लिया है. सिर्फ नाम नकली है, स्थितियाँ असली हैं. मुझे विश्वास है, यह नव-निर्मित रचना आपको अवश्य रुचेगी. बस, ज़रा सा इंतज़ार और.
मुझे जीवन में विविध प्रकार के लोगों से मिलना हुआ. चाहे उनकी जीवन-शैली से ध्वनित कुछ भी हो, यदि वे मुझसे एक अच्छी कहानी लिखवा गए तो मेरे लिए उनका मिलना किसी दैवीय प्रावधान से कम नहीं था. मैंने सभी कहानियाँ ज़िन्दा पात्रों पर लिखी है. मेरी कहानियों में स्थितियाँ काल्पनिक हो सकती हैं लेकिन चरित्र काल्पनिक नहीं. मुझे अपनी कहानियों के सभी पात्र अत्यन्त प्रिय हैं. मैं अकसर अपने पात्रों से यादों में मिलती हूँ, 'कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन' की माफ़िक. यह मेरा प्यारा शगल है.
हाँ, चलते-चलते एक बात और. मेरी फेसबुक मित्र Ma Jivan Shaifaly (Shaifaly Topiwala) की रूप-छटा मेरी इस सखी की रूप-छटा से मैच करती है, जिसका नाम मैंने ज्वाला रखा है, और जिसके रूप का खासा वर्णन इस संस्मरण और कहानी में किया है. शैफाली ने अपने जीवन के कठिन दौर की चर्चा फेसबुक पर कई बार की है. सम्भवतः उनके विचार भी कुछ भिन्न तरीके से क्रांतिकारी रहे हों. बहरहाल, सबका कल्याण हो.
I HOPE IT HELPS
PLZ MARK IT AS A BRAINLIEST
HERE IS UR ANSWER
संस्मरण लेखन क्या है?
संस्मरण लेखन क्या है?
संस्मरण लेखन क्या है? अन्य व्यक्ति से जुड़ी अपनी स्मृतियों का लेखन. जब हम किसी अन्य व्यक्ति से जुडी अपनी स्मृतियों का लेखन करते हैं, तो हमारा स्व भी उसमें स्वतः आ जाता है. जिस व्यक्ति को हम बहुत नज़दीक से जानते हैं, उसे पहचानने का दावा करते हैं, उसके बारे में यदि कुछ लिखेंगे तो उस लेखन में खुद को अदृश्य नहीं रख सकते. हम उसमें दिखेंगे ही दिखेंगे.
'आम आदमी की ख़ास कहानी : 5 : ज्वाला से ज्वालामुखी तक', इस संस्मरण की अपनी इस सखी पर मैंने तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व एक कहानी लिखी थी, 'ढाई आखर प्रेम का'. कहानी में असली स्थितियाँ नहीं लिखी थीं, कल्पना का मिश्रण था, पर संवाद वहाँ भी सच्चे थे. कहानी का अंत यूँ हुआ था : सखी मेरे हाथ से पुस्तक खींच कर परे फ़ेंक देती है और कहती है, 'पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित हुए.' और मैं सोचती रह जाती हूँ कि क्या इसने उन ढाई आखरों का अर्थ समझा है? : पर इस संस्मरण का कोई अंत नहीं. ज्वाला (नकली नाम) आज भी मेरी सखी है. जब तक जीवन चलेगा, यह संस्मरण भी चलेगा.
अब पुनः नए सिरे से इस स्मृति को लिखा है, जिसने एक कहानी का रूप ही ले लिया है. सिर्फ नाम नकली है, स्थितियाँ असली हैं. मुझे विश्वास है, यह नव-निर्मित रचना आपको अवश्य रुचेगी. बस, ज़रा सा इंतज़ार और.
मुझे जीवन में विविध प्रकार के लोगों से मिलना हुआ. चाहे उनकी जीवन-शैली से ध्वनित कुछ भी हो, यदि वे मुझसे एक अच्छी कहानी लिखवा गए तो मेरे लिए उनका मिलना किसी दैवीय प्रावधान से कम नहीं था. मैंने सभी कहानियाँ ज़िन्दा पात्रों पर लिखी है. मेरी कहानियों में स्थितियाँ काल्पनिक हो सकती हैं लेकिन चरित्र काल्पनिक नहीं. मुझे अपनी कहानियों के सभी पात्र अत्यन्त प्रिय हैं. मैं अकसर अपने पात्रों से यादों में मिलती हूँ, 'कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन' की माफ़िक. यह मेरा प्यारा शगल है.
हाँ, चलते-चलते एक बात और. मेरी फेसबुक मित्र Ma Jivan Shaifaly (Shaifaly Topiwala) की रूप-छटा मेरी इस सखी की रूप-छटा से मैच करती है, जिसका नाम मैंने ज्वाला रखा है, और जिसके रूप का खासा वर्णन इस संस्मरण और कहानी में किया है. शैफाली ने अपने जीवन के कठिन दौर की चर्चा फेसबुक पर कई बार की है. सम्भवतः उनके विचार भी कुछ भिन्न तरीके से क्रांतिकारी रहे हों. बहरहाल, सबका कल्याण हो.
I HOPE IT HELPS
PLZ MARK IT AS A BRAINLIEST
Answered by
0
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘संस्मरण’ को मैं रेखाचित्र से भिन्न साहित्यिक विद्या मानती हूँ। मेरे विचार में यह अन्तर अधिक न होने पर भी इतना अवश्य है कि हम दोनों को पहचान सकें। मेरा सौभाग्य रहा है कि अपने युग के विशिष्ट व्यक्तियों का मुझे साथ मिला और मैंने उन्हें निकट से देखने का अवसर पाया। उनके जीवन तथा आचरित आदर्शों ने मुझे निरन्तर प्रभावित किया है। उन्हें आशा-निराशा, जय-पराजय, सुख-दुख के अनेक क्षणों में मैंने देखा अवश्य, पर उनकी अडिग आस्था ने मुझ पर जीवनव्यापी प्रभाव छोड़ा है। उनके सम्बन्धों में कुछ लिखना उनके अभिनन्दन से अधिक मेरा पर्व-स्नान है।
आत्मकथ्य
‘संस्मरण’ को मैं रेखा चित्र से भिन्न साहित्यिक विधा मानती हूं। मेरे विचार में यह अन्तर अधिक न होने पर भी इतना अवश्य है कि हम दोनों को पहचान सकें।
‘रेखाचित्र’ एक बार देखे हुए व्यक्ति का भी हो सकता है जिसमें व्यक्तिव की क्षणिक झलक मात्र मिल सकती है। इसके अतिरिक्त इसमें लेखक तटस्थ भी रह सकेंगे। यह प्रकरण हमारी स्मृति में खो भी सकता है, परन्तु ‘संस्मरण’ हमारी स्थायी स्मृति से सम्बन्ध रखने के कारण संस्मण के पात्र से हमारे घनिष्ठ परिचय की अपेक्षा रखता है, जिसमें हमारी अनुभूति के क्षणों का योगदान भी रहा है। इसी कारण स्मृति में ऐसे क्षणों का प्रत्यावर्तन भी सहज हो जाता है और हमारा आत्मकथ्य भी आ जाता है।
यदि हम किसी से प्रगाढ़ और आत्मीय परिचय रखते हैं, तो उसे व्यक्ति को अनेक मनोवृत्तियों तथा उनके अनुसार आचरण करते देखना भी सहज हो जाता है और अपनी प्रतिक्रिया की स्मृति रखना भी स्वाभाविक हो जाता है। इन्हीं क्षणों का सुखद या दुःखद प्रत्यावर्तन ‘संस्मरण’ कहा जा सकता है। मेरे अधिकांश रेखाचित्र कहे जाने वाले शब्द-चित्र ‘संस्मरण’ की कोटि में ही आते हैं, क्यों कि किसी भी क्षणमात्र की झलक पाकर मैं उसके सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया प्रायः अपने लेखों में व्यक्त कर देती हूं।
मेरे संस्मरणों के पात्र सामान्य जन तथा पशु-पक्षी ही रहते हैं और उनसे घनिष्ठ आत्मीयता का बोध मेरे स्वभाव का अंग ही कहा जा सकता है। पालित पशु-पक्षी तो जन्म से अन्त तक मेरे पास रहते ही हैं, अतः उनकी स्वभावगत विशेषताएँ जानकर ही उन्हें संरक्षण दिया जा सकता है। नित्य देखते-ही–देखते मैं उनके सम्बन्ध में बहुत कुछ जान जाती हूँ और उन पर कुछ लिखना सहज हो जाता है। रहे सामान्य जन तो उनसे सम्पर्क बनाये रखना मुझे मन की तीर्थ यात्रा लगती है। उनके सम्बन्ध में जो कुछ जान सकती हूं, उसे जानना सौहार्द की शपथ है, पर लिखना अपनी इच्छा पर निर्भर है।
मेरा यह सौभाग्य रहा है कि अपने युग के विशिष्ठ व्यक्तियों का मुझे साथ मिला और मैंने उन्हें निकट से देखने का अवसर पाया। उनके जीवन के तथा आचरित आदर्शों ने मुझे निरन्तर प्रभावित किया है। उन्हें आशा-निराशा, जय-पराजय, सुख-दुःख के अनेक क्षणों में मैंने देखा अवश्य, पर उनकी अडिग आस्था ने मुझ पर जीवनव्यापी प्रभाव छोड़ा है। उनके सम्बन्धों में कुछ लिखना उनके अभिन्नदन से अधिक मेरा पर्व-स्नान है। हम सूर्य की पूजा सूर्य को दिखाकर करते हैं। गंगाजल से गंगा को अर्घ्य देते हैं, क्योंकि यह पूजा हमारी उस कृतज्ञता की स्वीकृति है, जो उनके प्राप्त शक्ति से उत्पन्न हुई है।
महादेवी
‘संस्मरण’ को मैं रेखाचित्र से भिन्न साहित्यिक विद्या मानती हूँ। मेरे विचार में यह अन्तर अधिक न होने पर भी इतना अवश्य है कि हम दोनों को पहचान सकें। मेरा सौभाग्य रहा है कि अपने युग के विशिष्ट व्यक्तियों का मुझे साथ मिला और मैंने उन्हें निकट से देखने का अवसर पाया। उनके जीवन तथा आचरित आदर्शों ने मुझे निरन्तर प्रभावित किया है। उन्हें आशा-निराशा, जय-पराजय, सुख-दुख के अनेक क्षणों में मैंने देखा अवश्य, पर उनकी अडिग आस्था ने मुझ पर जीवनव्यापी प्रभाव छोड़ा है। उनके सम्बन्धों में कुछ लिखना उनके अभिनन्दन से अधिक मेरा पर्व-स्नान है।
आत्मकथ्य
‘संस्मरण’ को मैं रेखा चित्र से भिन्न साहित्यिक विधा मानती हूं। मेरे विचार में यह अन्तर अधिक न होने पर भी इतना अवश्य है कि हम दोनों को पहचान सकें।
‘रेखाचित्र’ एक बार देखे हुए व्यक्ति का भी हो सकता है जिसमें व्यक्तिव की क्षणिक झलक मात्र मिल सकती है। इसके अतिरिक्त इसमें लेखक तटस्थ भी रह सकेंगे। यह प्रकरण हमारी स्मृति में खो भी सकता है, परन्तु ‘संस्मरण’ हमारी स्थायी स्मृति से सम्बन्ध रखने के कारण संस्मण के पात्र से हमारे घनिष्ठ परिचय की अपेक्षा रखता है, जिसमें हमारी अनुभूति के क्षणों का योगदान भी रहा है। इसी कारण स्मृति में ऐसे क्षणों का प्रत्यावर्तन भी सहज हो जाता है और हमारा आत्मकथ्य भी आ जाता है।
यदि हम किसी से प्रगाढ़ और आत्मीय परिचय रखते हैं, तो उसे व्यक्ति को अनेक मनोवृत्तियों तथा उनके अनुसार आचरण करते देखना भी सहज हो जाता है और अपनी प्रतिक्रिया की स्मृति रखना भी स्वाभाविक हो जाता है। इन्हीं क्षणों का सुखद या दुःखद प्रत्यावर्तन ‘संस्मरण’ कहा जा सकता है। मेरे अधिकांश रेखाचित्र कहे जाने वाले शब्द-चित्र ‘संस्मरण’ की कोटि में ही आते हैं, क्यों कि किसी भी क्षणमात्र की झलक पाकर मैं उसके सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया प्रायः अपने लेखों में व्यक्त कर देती हूं।
मेरे संस्मरणों के पात्र सामान्य जन तथा पशु-पक्षी ही रहते हैं और उनसे घनिष्ठ आत्मीयता का बोध मेरे स्वभाव का अंग ही कहा जा सकता है। पालित पशु-पक्षी तो जन्म से अन्त तक मेरे पास रहते ही हैं, अतः उनकी स्वभावगत विशेषताएँ जानकर ही उन्हें संरक्षण दिया जा सकता है। नित्य देखते-ही–देखते मैं उनके सम्बन्ध में बहुत कुछ जान जाती हूँ और उन पर कुछ लिखना सहज हो जाता है। रहे सामान्य जन तो उनसे सम्पर्क बनाये रखना मुझे मन की तीर्थ यात्रा लगती है। उनके सम्बन्ध में जो कुछ जान सकती हूं, उसे जानना सौहार्द की शपथ है, पर लिखना अपनी इच्छा पर निर्भर है।
मेरा यह सौभाग्य रहा है कि अपने युग के विशिष्ठ व्यक्तियों का मुझे साथ मिला और मैंने उन्हें निकट से देखने का अवसर पाया। उनके जीवन के तथा आचरित आदर्शों ने मुझे निरन्तर प्रभावित किया है। उन्हें आशा-निराशा, जय-पराजय, सुख-दुःख के अनेक क्षणों में मैंने देखा अवश्य, पर उनकी अडिग आस्था ने मुझ पर जीवनव्यापी प्रभाव छोड़ा है। उनके सम्बन्धों में कुछ लिखना उनके अभिन्नदन से अधिक मेरा पर्व-स्नान है। हम सूर्य की पूजा सूर्य को दिखाकर करते हैं। गंगाजल से गंगा को अर्घ्य देते हैं, क्योंकि यह पूजा हमारी उस कृतज्ञता की स्वीकृति है, जो उनके प्राप्त शक्ति से उत्पन्न हुई है।
महादेवी
Similar questions
India Languages,
7 months ago
World Languages,
7 months ago
Hindi,
7 months ago
Economy,
1 year ago
Math,
1 year ago
Physics,
1 year ago