what is tatpurush samas?describe briefly with example
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Tatpurus samas me karak ke bhibhakti chihn ka lop ho use tatpurush samas kehte hai.example parlokgaman ka parlok ke liye gaman isme bhibhakti chihn ka lop hai isliye ye tatpurush samas hai .
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तत्पुरुष समास- (Tatpurush Samas) : जिस समास में अंतिम पद की प्रधानता रहती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । इस समास के पहचानने का तरीका यह है कि दोनों पदों के बीच में कारक की विभक्ति लुप्त रहती है । जैसे-
राजपुत्र- राजा का पुत्र,
दानवीर- दान में वीर,
पथभ्रष्ट- पथ से भ्रष्ट, इत्यादि ।
तत्पुरुष समास में पहले पद की जो विभक्ति होती है, उसी विभक्ति के नाम पर तत्पुरुष समास का नामकरण होता है। नामकरण के निम्नांकित प्रकार हैं-
(a) ‘कर्म तत्पुरुष’ या ‘द्वितीया तत्पुरुष’ – गृहागत-गृह को आगत, सुखप्राप्त-सुख को प्राप्त आदि।
(b) ‘करण तत्पुरुष’ या ‘तृतीया तत्पुरुष’ – अकालपीड़ित-अकाल से पीड़ित, करुणापूर्ण-करुणा से पूर्ण, कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य इत्यादि
(c) ‘सम्प्रदान तत्पुरुष’ या ‘चतुर्थी तत्पुरुष’ – गोशाला-गाय के लिए शाला, पुत्रशोक-पुत्र के लिए शोक आदि।
(d) ‘अपादान तत्पुरुष’ या ‘पंचमी तत्पुरुष’ – अन्नहीन-अन्न से हीन, धनहीन-धन से हीन, दयाहीन-दया से हीन
(e)‘संबंध तत्पुरुष’ या ‘षष्ठी तत्पुरुष’ – मदिरालय-मदिरा का आलय, राजपुत्र-राजा का पुत्र, विद्यार्थी-विद्या का अर्थी इत्यादि ।
(f) ‘अधिकरण तत्पुरुष’ या ‘सप्तमी तत्पुरुष’ – आनन्दमग्न-आनन्द में मग्न, कुलश्रेष्ठ-कुल में श्रेष्ठ, प्रेममग्न-प्रेम में मग्न इत्यादि ।
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